भक्ति और नीति (बिहारीलाल)

निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित दिए, गए प्रश्नों के उत्तर हल सहित |
भक्ति

1. सोहत ओढ़ पीत पटु, स्याम सलौने गात।
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यो प्रभात ॥
अधर धरत हरि कैं परत, ओठ-दीठि-पट जोति ।
हरित बाँस की बाँसुरी, इन्द्रधनुष- रँग होति ॥
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।
उत्तर- सन्दर्भ – यह दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘भक्ति’ शीर्षक दोहों से उद्धृत किया गया है। इसके रचयिता रीति काल के सर्वश्रेष्ठ कवि बिहारीलाल हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या- श्रीकृष्ण के सुन्दर श्यामवर्ण के शरीर पर पीले वस्त्र (पीताम्बर) ऐसे सुशोभित हो रहे हैं सानो नीलमणि के पर्वत पर प्रात:काल में पड़ती धूप शोभा पा रही हो ।
(iii) इन पंक्तियों में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- मधुर साहित्यिक ब्रजभाषा ।

2. या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोइ ।
“ज्यों ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों त्यों उज्ज्वलु होइ ॥
तौ लगु या मन- सदन मैं, हरि आवैं किहिं बाट ।
विकट जटै जौ लगु निपट, खुटै न कपट-कपाट ॥
(i) काव्यांश में किसकी गति के समझमें न आने की बात कही गई है ?
उत्तर- काव्यांश में अनुराग से भरे हुए मन की गति के समझ में न आने की बात कही गई है ?
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-रेखांकित अंश की व्याख्या – कवि कहता है कि जब तक मेरे मन रूपी घर में मजबूती से लगे कपट रूपी किवाड़ नहीं खुल जाते तब तक भगवान इस घर में किस मार्ग से आ सकते हैं?
(iii) कवि के अनुसार श्यामवर्ण कैसे उज्ज्वल होता जाता है?
उत्तर- कवि के अनुसार जैसे-जैसे श्यामवर्ण श्रीकृष्ण के प्रेम के रंग में भीगता है, तैसे ही तैसे यह उज्ज्वल होता जाता है |

3. जगत जनायो जिहिं सकलु, सो हरि जान्यौ नाँहि ।
ज्यों आँखिनु सबु देखिए, आँखि न देखी जाँहि ॥
जप माला छापा तिलक, सरै न एकौ कामु ।
मन काँचै नाचे वृथा, साँचे राचे रामु ॥
(i) कवि के अनुसार राम किससे प्रेम करते हैं?
उत्तर- कवि के अनुसार राम सच्चे व्यक्ति से ही प्रेम करते हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – जिस ईश्वर ने सम्पूर्ण विश्व को प्रकट किया है, रचा है, उस ईश्वर के बारे में यह सारा संसार कुछ भी नहीं जानता है। यह कितने आश्चर्य की बात है कि सबको ज्ञान कराने वाला, देने वाला स्वयं अज्ञात है। उस ईश्वर के विषय में कोई सही-सही नहीं जानता है।आँखों से हम सबकुछ देख लेते हैं, पर अपनी उन आँखों को, अपनी आँखों से हम नहीं देख पाते |
(iii) इन पंक्तियों में किस अलंकार का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- अनुप्रास एवं यमक अलंकार ।

नीति

4. दुसह दुराज प्रजानु कौं, क्यौं न बढ़े दुख – दंदु |
अधिक अँधेरौ जग करत, मिलि मावस, रबि चंदु ॥
बसै बुराई जासु तन, ताही कौ सनमानु ।
भलौ- भलौ कहि छोडियै, छोटे ग्रह जपु, दानु ॥
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत दोहा कविवर बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सतसई से हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी के काव्य खण्ड में संकलित नीति शीर्षक से लिया गया है |
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – सज्जन व्यक्ति का सम्मान नहीं होता क्योंकि उससे किसी को भय नहीं होता। वह अप्रसन्न होकर भी किसी को हानि नहीं पहुँचाता । उदाहरण के लिए चन्द्र, वृहस्पति आदि जो शान्त प्रकृति के ग्रह हैं, उनके लिए कोई जप-दान आदि नहीं किया जाता, उन्हें अच्छे ग्रह कहकर छोड़ दिया जाता है किन्तु भौम, शनि आदि जो क्रूर और दुष्ट स्वभाव के ग्रह हैं, उनके लिए जप और दान किया जाता है।
(iii) किसी देश में दो राजाओं का राज्य होने पर प्रजा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- जब किसी देश में दो राजाओं का राज्य हो जाता है तो प्रजा के कष्ट बहुत बढ़ जाते हैं क्योंकि दोनों राजा कर तो वसूल करते हैं किन्तु प्रजा की सुख-सुविधाओं की चिन्ता दोनों में से कोई भी नहीं करता ।

5. नर की अरु नल नीर की, गति एकै करि जोइ ।
जेतौ नीचौ ह्वै चलै, तेतौ ऊँचौ होइ ॥
बढ़त – बढ़त सम्पति, सलिल, मन-सरोजु बढ़ि जाइ ।
घटत-घटत सुन फिरि घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ ॥
(i) तालाब के पानी के बढ़ने और सुखने का कमल पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- जब तालाब में पानी बढ़ता है तो कमल भी पानी के साथ बढ़ता चला जाता है किन्तु जब तालाब में पानी सूखता है तब कमल घटता नहीं बल्कि सूख जाता है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – कविवर बिहारी कहते हैं कि मनुष्य और नल का जल – इन दोनों की एक जैसी स्थिति दिखाई पड़ती है। इन दोनों का स्वभाव है कि ये जितना नीचे होकर चलते हैं, उतने ही ऊँचे उठते हैं।
(iii) इन पंक्तियों में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा ।

6. जौ चाहत, चटक न घटै, मैलौ होइ न मित्त।
रंज- राजसु न छ्वाइये, नेह-चीकने चित्त ॥
बुरौ बुराई जौ तजै, तौ चितु खरौ डरातु ।
ज्यौं निकलंकु मयंकु लखि, गनें लोग उतपातु ॥
(i) यदि कभी चन्द्रमा कलंक- रहित दिखाई दे तो लोग क्या आशंका करते हैं?
उत्तर – यदि कभी चन्द्रमा कलंक-रहित दिखाई पड़ता है तो लोग यही आशंका करते हैं कि कोई उत्पात होने वाला है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – रेखांकित अंश की व्याख्या- यदि तुम चाहते हो कि मित्रता की चमक न घटे अर्थात मित्रता बढ़ती ही जाये और चाहते हो कि मित्रता में मैलापन न हो तो स्नेह से चिकने मन रूपी दर्पण पर धन सम्बन्धी धूल को मत चढ़ने दो ।
(iii) किस तरह के मन को मैला होने से बचने की प्रेरणा दी गई है ?
उत्तर – प्रेमरूपी तेल से चिकने मन को रजोगुणी वृतियोंरुपी धुल से मैला होने से बचाने की प्रेरणा दी गई है |