निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित दिए, गए प्रश्नों के उत्तर हल सहित |
पद्य - 1
1. भारत माता का मन्दिर यह समता का संवाद जहाँ, |
सबका शिव कल्याण यहाँ है पावें सभी प्रसाद यहाँ ।
जाति-धर्म या संप्रदाय का, नहीं भेद-व्यवधान यहाँ,
सबका स्वागत, सबका आदर सबका सम सम्मान यहाँ ।
राम रहीम, बुद्ध, ईसा का सुलभ एक-सा ध्यान यहाँ,
भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के गुण गौरव का ज्ञान यहाँ ।
(i) उपर्युक्त पंद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- सन्दर्भ- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित पाठ ‘भारत माता का मन्दिर यह’ नामक पाठ से अवतरित है, इसके रचयिता राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – कविवर मैथिलीशरण गुप्त कहते हैं कि यह भारत माँ का मन्दिर है, जहाँ राम, रहीम, बुद्ध तथा ईसा का सभी समान भाव से ध्यान लगाते हैं। ऐसा नहीं है कि कोई किसी अवतार का आदर करे और किसी से घृणा करे ! उतना ही नहीं, यहाँ संसार की सभी संस्कृतियों के गौरव की गाथाएँ गाई जाती हैं, मात्र एक संस्कृति का ही ढिढोरा नहीं पीटा जाता ।
(iii) कहाँ पर कौन सा व्यवधान नहीं है ?
उत्तर- हमारे देश में जाति, धर्म और समुदाय के नाम पर लोगों में वैमनस्य का व्यवधान नहीं है | यहाँ सभी जाति, धर्मों और सम्प्रदायों के लोग एकसाथ मिल जुलकर रहते हैं |
(iv) इन पंक्तियों में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली |
पद्य - 2
2. नहीं चाहिए बुद्धि बैर की भला प्रेम का उन्माद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ ।
सब तीर्थों का एक तीर्थ यह हृदय पवित्र बना लें हम
आओ यहाँ अजातशत्रु बन, सबको मित्र बना लें हम।
रेखाएँ प्रस्तुत हैं, अपने मन के चित्र बना लें हम।
सौ-सौ आदर्शों को लेकर एक चरित्र बना लें हम ।
(i) उपर्युक्त पंद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- सन्दर्भ- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित पाठ ‘भारत माता का मन्दिर यह’ नामक पाठ से अवतरित है, इसके रचयिता राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त हैं।
(ii) हम अपने चरित्र का निर्माण किस प्रकार कर सकते हैं?
उत्तर- हमारे सामने विविध प्रकार के अनेक आदर्श जैसे सत्याचरण करें, न्यायानुकूल चलें, स्वाध्याय से कभी प्रमाद न करें, आलस्य बुरी बला है, हम मातृभक्त बनें, पितृभक्त बनें, आचार्य भक्त बनें तथा अतिथि भक्त बनें, ये सभी आदर्श हैं, इन्हें हम अपने जीवन में उतारकर एक सुदृढ़ चरित्र का निर्माण कर सकते हैं।
(iii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – कविवर · मैथिलीशरण गुप्त कहते हैं कि हमारा भारत जो भारत माता का मन्दिर है यह. ऐसा-वैसा नहीं है, यह तो सभी तीर्थों में पवित्र तीर्थ है, पावन भूमि है। यहाँ पर निवास करते हुए हमें अपना हृदय पवित्र बनाना चाहिए । त्याग सेवा परोपकारादि सकारात्मक भावों को अपनाना चाहिए तथा ईर्ष्या, द्वेष, भेदभाव एवं कुटिलता जैसे नकारात्मक भावों को त्याग देना चाहिए, तभी हमारा हृदय पवित्र बनेगा ।
(iv) इन पंक्तियों में किस अलंकार का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- ‘अजातशत्रु’ में श्लेष अलंकार की छंटा दृष्टव्य है। “सौ-सौ ” में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है ।
(v) भारत देश किस प्रकार का तीर्थ है ?
उत्तर- भारत देश सभी तीर्थों में उत्तम तीर्थ है क्यूंकि यह किसी एक सम्प्रदाय या किसी धर्म से जुड़ी तीर्थ नहीं है , इसमें सभी तीर्थों का समावेश है |
पद्य - 3
3. बैठो माता के आँगन में नाता भाई-बहन क
समझे उसकी प्रसव वेदना वही लाल है माई का
एक साथ मिल बाँट लो अपना हर्ष विषाद यहाँ है
सबका शिव कल्याण यहाँ है पावें सभी प्रसाद यहाँ ।
मिला सेव्य का हमें पुजारी सकल काम उस न्यायी का
मुक्ति लाभ कर्तव्य यहाँ है एक-एक अनुयायी का
कोटि-कोटि कण्ठों से मिलकर उठे एक जयनाद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है पावें सभी प्रसाद यहाँ ।
(i) उपर्युक्त पंद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- सन्दर्भ- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित पाठ ‘भारत माता का मन्दिर यह’ नामक पाठ से अवतरित है, इसके रचयिता राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त हैं।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में कवि का माता से आशय क्या है?
उत्तर- उपर्युक्त पद्यांश में कवि का माता से आशय ‘भारत माता’ से है।
(iii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – हम ईश्वर की समाराधना करेंगे तो हमें मुक्तिलाभ प्राप्त होगा। मोक्ष प्राप्त करना हमारा कर्तव्य है, करणीय लक्ष्य है जिसे ईश्वर का हर एक अनुयायी प्राप्त करना चाहता है।
(iv) इन पंक्तियों में किस रस का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- प्रस्तुत अवतरण में शान्त रस बह रहा है।
(v)अनुयायी का शाब्दिक अर्थ कीजिए |
उत्तर- अनुयायी का शाब्दिक अर्थ है – किसी मत का अनुसरण करने वाला |
