भारतीया संस्कृतिः

संस्कृत-गद्यांशों का सन्दर्भ- सहित हिन्दी में अनुवाद

1- “विश्वस्य स्रष्टा ईश्वर: एक एव” इति भारतीय संस्कृतेः मूलम् । विभिन्नमतावलम्बिनः विविधैः नामभिः एकम् एव ईश्वरं भजन्ते । अग्निः, इन्द्रः, कृष्णः, करीम:, रामः, रहीम:, जिन:, बुद्ध:, ख्रिस्तः, अल्लाहः इत्यादीनि नामानि एकस्य एव परमात्मन: सन्ति। तम् एव ईश्वरं जनाः गुरुः इत्यपि मन्यन्ते, अतः सर्वेषां मतानां समभाव: सम्मानश्च अस्माकं संस्कृतेः सन्देशः ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत परिचायिका’ खण्ड के ‘भारतीया संस्कृति:’ नामक पाठ से उद्धृत हैं।
हिन्दी अनुवाद – विश्व का निर्माण करने वाला ईश्वर एक ही है-यही भारतीय संस्कृति का आधार है। भिन्न-भिन्न मतों को मानने वाले लोग विभिन्न प्रकार के नामों से एक ही ईश्वर का भजन करते हैं। अग्नि, इन्द्र, कृष्ण, करीम, राम, रहीम, जैन, बुद्ध, क्राइस्ट, अल्लाह इत्यादि नाम एक ही ईश्वर के हैं। उसी ईश्वर को लोग ‘गुरु’ भी मानते हैं । इसीलिए सभी मतों के साथ समान भाव और सभी का सम्मान करना हमारी संस्कृति का सन्देश है।
2- मानव जीवनस्य संस्करणं संस्कृति । अस्माकं पूर्वजा: मानवजीवनं संस्कर्तुं महान्तं प्रयत्नं अकुर्वन् । ते अस्माकं जीवनस्य संस्करणाय यान् आचारान् विचारान् च अदर्शयन् तत् सर्वम् अस्माकं संस्कृति: । “विश्वस्य स्रष्टा ईश्वर: एक एव ” इति भारतीय संस्कृते: मूलम् । विभिन्नमतावलम्बिनः विविधैः नामभिः एकम् एव ईश्वरं भजन्ते ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत परिचायिका’ खण्ड के ‘भारतीया संस्कृति:’ नामक पाठ से उद्धृत है।
हिन्दी अनुवाद – मानव जीवन का संस्कार करना ही ‘संस्कृति’ कहलाता है। हमारे पूर्वजों ने मानव जीवन का संस्कार करने के लिए बहुत प्रयत्न किया था। उन्होंने हमारे जीवन के संस्कार के लिए जिन आचारों-विचारों का प्रदर्शन किया, वही सब हमारी संस्कृति है। विश्व का निर्माण करने वाला ईश्वर एक ही है – यही भारतीय संस्कृति का आधार है। भिन्न-भिन्न मतों को मानने वाले लोग विभिन्न प्रकार के नामों से एक ही ईश्वर का भजन करते हैं।

3- भारतीया संस्कृतिः तु सर्वेषां मतावलम्बिनां संगमस्थली । काले-काले विविधाः विचाराः भारतीय-संस्कृतौ समाहिताः । एषा संस्कृति: सामासिकी संस्कृतिः यस्या: विकासे विविधानां जातीनां सम्प्रदायानां विधासानां च योगदानं दृश्यते । – अतएव अस्माकं भारतीयानाम् एका संस्कृति एका च राष्ट्रीयता । सर्वेऽपि वयं एकस्या संस्कृते समुपासकाः, एकस्य राष्ट्रस्य च राष्ट्रियाः। यथा भ्रातरः परस्परं मिलित्वा सहयोगेन सौहार्देन च परिवारस्य उन्नतिं कुर्वन्ति, तथैव अस्माभिः अपि सहयोगेन सौहार्देन च राष्ट्रस्य उन्नतिः कर्त्तव्या ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत परिचायिका’ खण्ड के ‘भारतीया संस्कृति:’ नामक पाठ से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने भारतीय संस्कृति की अनेकता में एकता की विशेषता का परिचय दिया है।
हिन्दी अनुवाद – भारतीय संस्कृति सब मतों के अनुयायियों के मिलन का स्थान है। समय-समय पर अनेक प्रकार के विचार भारतीय संस्कृति में समा गये हैं। यह संस्कृति मिली-जुली संस्कृति है जिसके विकास में अनेक जातियों, सम्प्रदायों और विश्वासों का योगदान दिखाई पड़ता है। इसलिए हम सब भारतीयों की एक ही संस्कृति है और एक ही राष्ट्रीयता है। हम सभी एक ही संस्कृति के उपासक हैं और एक ही राष्ट्र के राष्ट्रीय हैं। जिस प्रकार भाई-भाई आपस में मिलकर सहयोग और प्रेम से परिवार की उन्नति करते हैं, उसी प्रकार हमें भी सहयोग और प्रेम के साथ राष्ट्र की उन्नति करनी चाहिए।
4- अस्माकं संस्कृतिः सदा गतिशीला सर्वते । मानवजीवनं संस्कर्तुर् ए॥ यथासमयं नवा-नवां विचारधारां स्वीकरोति, व शक्तिं च प्राप्नोति । अत्र दुराग्रहः नास्ति यत् युक्तियुक्त कल्याणकारि च तदत्र सहर्षं गृही भवति । एतस्याः गतिशीलतायाः रहस्यं मानवजीवनस्य शाश्वतमूल्येषु निहितम्, तद् यथा सत्यस्य प्रतिष्ठा, सर्वभूतेषु समभावः विचारेषु औदार्यम्, आचारे दृढ़ता चेति ।
सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक के ‘संस्कृत परिचायिका’ खण्ड के ‘भारतीया संस्कृति:’ नामक पाठ से उद्धत हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने भारतीय संस्कृति की गतिशीलता का परिचय दिया है।
हिन्दी अनुवाद – हमारी संस्कृति सदा गतिशील है । मानव जीवन का संस्कार करने के लिए यह नयी-नयी विचारधाराओं को स्वीकार कर लेती है और नयी शक्ति प्राप्त करती है। इसमें हठवादिता नहीं । जो युक्तियुक्त और कल्याणकारी बात होती है वह इसमें सहर्ष ग्रहण कर ली जाती है। इसकी गतिशीलता का रहस्य मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों में निहित है। जैसे सत्य की प्रतिष्ठा, सब प्राणियों में समभाव, विचारों में उदारता और आचरण में दृढ़ता।
5- एषा कर्मवीराणां संस्कृतिः । “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः” इति अस्याः उद्घोषः । पूर्वं कर्म, तदनन्तरं फलम् इति अस्माकं संस्कृते नियमः । इदानीं यदा वयं राष्ट्रस्य नवनिर्माणे संलग्नाः स्मः निरन्तरं कर्मकरणम् अस्माकं मुख्यं कर्त्तव्यम् । निजस्य श्रमस्य फलं भोग्यं, अन्यस्य श्रमस्य शोषणं सर्वथा वर्जनीयम्। यदि वयं विपरीतम् आचरामः तदा न वयं सत्यं भारतीय-संस्कृतेः उपासकाः । वयं तदैव यथार्थं भारतीयाः यदास्माकम् आचार-विचारे च अस्माकं संस्कृतिः लक्षिता भवेत् । अभिलषामः वयं यत् विश्वस्य अभ्युदयाय भारतीयसंस्कृते: एक: दिवस: सन्देश: लोके सर्वत्र प्रसरेत् ।
सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत परिचायिका’ खण्ड के ‘भारतीया संस्कृति:’ नामक पाठ से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने भारतीय संस्कृति की कर्म-प्रधानता का परिचय दिया है।
हिन्दी अनुवाद – यह कर्मवीरों की संस्कृति है। ‘कर्म’ को करते हुए ही सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करनी चाहिए – यह इस संस्कृति की घोषणा है। ‘पहले कर्म फिर फल’ – यह हमारी संस्कृति का नियम है। इस समय जबकि हम राष्ट्र के नव-निर्माण में लगे हैं, निरन्तर कर्म करना हमारा मुख्य कर्तव्य है। अपने श्रम का फल भोगना चाहिए। दूसरे के श्रम का शोषण सब प्रकार से त्यागना चाहिए। यदि हम इसके विपरीत आचरण करें तब हम सच्चे भारतीय संस्कृति के उपासक नहीं हैं। हम तभी यथार्थ में भारतीय हैं जब हमारे आचार-विचार में हमारी संस्कृति लक्षित हो। हम इच्छा करते हैं कि विश्व की उन्नति के लिए भारतीय संस्कृति का यह सन्देश संसार में, सब जगह फैले ।

संस्कृत-पद्यांश (श्लोक) का सन्दर्भ- सहित हिन्दी में अनुवाद

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ॥
सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत परिचायिका’ खण्ड के ‘भारतीया संस्कृति:’ नामक पाठ से उद्धृत है।
हिन्दी अनुवाद – संसार में सब सुखी हों, सभी नीरोग हों, सभी कल्याण देखें, कोई दुःख का भागी न हो ।

संस्कृत प्रश्नोत्तर

1.विश्वस्य स्रष्टा कः ?
उत्तर- विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एक एव अस्ति ।
2. भारतीय: संस्कृतेः मूलं किमस्ति ?
उत्तर- विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एक एव इति भारतीय-संस्कृतेः मूलम् अस्ति।
3. अस्माकं संस्कृतेः कः दिव्यः सन्देशः अस्ति ?
उत्तर- सर्वेषां मतानां समभाव: सम्मानश्च अस्माकं संस्कृते: दिव्यः सन्देशः अस्ति।
4. भारतीयाः संस्कृतिः कीदृशी वर्तते ?
या अस्माकं संस्कृतिः कीदृशी वर्तते ?
उत्तर- भारतीयाः संस्कृतिः सदा गतिशीला वर्तते।
5. ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ एषः दिव्यः सन्देशः कस्य अस्ति ?
उत्तर – एषः भारतीयाः संस्कृतेः सन्देशः अस्ति।
6. भारतीया संस्कृति: कां सङ्गमस्थली ?
उत्तर- भारतीया संस्कृतिः सर्वेषां मतावलम्बिनां सङ्गमस्थली।
7. अस्माकं संस्कृतेः कः नियमः ?
उत्तर- अस्माकं संस्कृते: नियम: ‘पूर्व कर्मं, तदनन्तरं फलम्’ इति अस्ति ।
8. भारतीयसंस्कृतिः कस्य अभ्युदयाय इति ?
उत्तर – भारतीयसंस्कृतिः विश्वस्य अभ्युदयांय इति ।
9. संस्कृतिशब्दस्य किं तात्पर्यम् अस्ति ?
उत्तर- मानवजीवनस्य संस्करणं संस्कृतिः इति संस्कृति शब्दस्य तात्पर्यम्।