हल्दीघाटी(श्यामनारायण पाण्डेय)

निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित दिए, गए प्रश्नों के उत्तर हल सहित |

पहला पद्य

1.मेवाड़ केसरी देख रहा, केवल रण का न तमाशा था ।
वह दौड़-दौड़ करता था रण, वह मान-रक्त का प्यासा था ॥
चढ कर चेतक पर घूम-घूम करता सेना रखवाली था।
ले महामृत्यु को साथ-साथ मानो प्रत्यक्ष कपाली था ॥
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- सन्दर्भ-प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक के श्री श्यामनारायण पाण्डेय विरचित ‘हल्दीघाटी’ शीर्षक पाठक से अवतरित किया गया है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – कवि श्री श्यामनारायण पाण्डेय महाराणा के युद्ध कौशल का वर्णन इस प्रकार कर रहे हैं कि मेवाड़ का सिंह महाराणा प्रताप केवल युद्ध का खेल नहीं देख रहा था, वह तो दौड़-दौड़ कर युद्ध कर रहा था । अपने चेतक नाम के घोड़े पर बैठकर वह दौड़ते हुए मानसिंह की खोज करता हुआ अपनी सेना का रक्षक बना हुआ था।
(iii) मेवाड़ केसरी किसे कहा गया है और वह क्या कर रहा था ?
उत्तर- महाराणा प्रताप को मेवाड़ केसरी कहा गया है | वे हल्दीघाटी के मैदान में चारो ओर दौड़ दौड़कर युद्ध कर रहे थे |
(iv) इन पंक्तियों में किस शैली का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- शैली वीररस पूर्ण, ओजस्विनी है।

दूसरा पद्य

2.चढ़ चेतक पर तलवार उठा, रखता था भूतल पानी को ।
राणा प्रताप सिर काट-काट,करता था सफल जवानी को।।
सेना-नायक राणा के भी, रण देख देखकर चाह भरे।
मेवाड़ सिपाही लड़ते थे ,दूने तिगुने उत्साह भरे ||
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- सन्दर्भ-प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक के श्री श्यामनारायण पाण्डेय विरचित ‘हल्दीघाटी’ शीर्षक पाठक से अवतरित किया गया है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – ‘चेतक’ महाराणा प्रताप का सर्वप्रिय अश्व था। युद्ध के समय वे अपने इसी चेतक पर सवार होकर और अपने हाथ में दुश्मनों का कलेजा हिलानेवाली चमचमाती तलवार लिए थे। वे अपने उस चेतक पर बैठकर, जिसके लिए पृथ्वी का धरातल और गहरी नदियाँ भी समान थे, जो थल और जल; दोनों पर सरपट दौड़ जाता था, अकबर के सैनिकों के शीश काट-काटकर ढेर लगा रहे थे। अपने इस प्रताप और अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हुए वे अपनी जवानी को सार्थक सिद्ध कर रहे थे।
(iii)राणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध में किस कारण सफलता प्राप्त की?
उत्तर-राणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध में अपनी वीरता और जवानी के कारण सफलता प्राप्त की।
(iv) राणा प्रताप के सैनिक किस प्रकार युद्ध कर रहे थे?
उत्तर-राणा प्रताप के सैनिक उनका रण-कौशल देख-देखकर और भी उत्साहित होकर युद्ध कर रहे थे। वे राणा प्रताप के पराक्रम को देखकर दोगुने-तिगुने उत्साह के साथ युद्ध कर रहे थे।

तीसरा पद्य

3.क्षण मार दिया कर कोड़े से ,रण किया उतरकर घोड़े से ।
राणा रण-कौशल दिखा-दिखा,चढ़ गया उतरकर घोड़े से ॥
क्षण भीषण हलचल मचा-मचा, राणा-कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रक्त पीने का यह, रण-चण्डी जीभ पसार बढ़ी ॥
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- सन्दर्भ-प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक के श्री श्यामनारायण पाण्डेय विरचित ‘हल्दीघाटी’ शीर्षक पाठक से अवतरित किया गया है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – ‘उधर युद्ध में महाराणा क्षण-क्षण अधिकाधिक विकराल होते जा रहे थे। वे किसी क्षण अपने अश्व चेतक पर अपने हाथ में लिए चाबुक या घोड़े से प्रहार कर उसे अपना वेग बढ़ाने का संकेत देते और वह वायु-वेग से महाराणा को युद्धभूमि में इधर-उधर दौड़ाता तथा महाराणा भी अत्यन्त वेग से शत्रुओं का मर्दन करते। कभी वे आवश्यक समझते तो तीव्र गति से अपने घोड़े से उतरकर ही युद्धभूमि में शत्रु सैनिकों को धराशायी करने लगते।
(iii) रण-चण्डी से किसकी तुलना की गई है?
उत्तर- रण-चण्डी से महाराणा प्रताप की तलवार की तुलना की गई है।