हिमालय से(महादेवी वर्मा)

निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित दिए, गए प्रश्नों के उत्तर हल सहित |

1. नभ में गर्वित झुकता न शीश
पर अंक लिए हैं दीन क्षार !
मन गल जाता नत विश्व देख,
तन सह लेता है कुलिश-भार !
कितने मृदु कितने कठिन प्राण !
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।
उत्तर- सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश ‘हिमालय से शीर्षक कविता से उद्धृत किया गया है जो छायावादी कवि महादेवी वर्मा जी के ‘सान्ध्य गीत’ | नामक काव्यसंग्रह से संकलित है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – हे हिमालय ! तुम्हारा सिर गर्व के साथ आकाश में ऊँचा उठा है जो कभी झुकता नहीं । परन्तु तुम अपनी गोद में तुच्छ धूल को धारण किये रहते हो ।
(iii)‘नभ में गर्वित झुकता न शीश’ पंक्ति में हिमालय की किस विशेषता को बताया गया है ?
उत्तर-‘नभ में गर्वित झुकता न शीश’ पंक्ति में हिमालय की सर्वोच्चता और स्वाभिमानिताके विषय में बताया गया है
(iv) इन पंक्तियों में किस शैली का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- छायावादी प्रतीकात्मक एवं भावात्मक शैली ।