सवैये और कवित्त (रसखान)

निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित दिए, गए प्रश्नों के उत्तर हल सहित |

1. मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
जौ पसु हौं तो कहा बसु मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन ॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्मो कर छत्र पुरंदर-धारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं, मिलि कालिंदी – कूल कदंब की डारन ॥
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- सन्दर्भ- श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त कविवर रसखान ब्रज के प्राकृतिक सौन्दर्य पर मुग्ध थे । प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक में संगृहीत रसखान के सवैयों से लिया गया है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – कवि भगवान से कामना करता है कि हे प्रभु! यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनूँ तो ब्रज में गोकुल गाँव के ग्वालों के मध्य निवास करूँ, परन्तु मनुष्य योनि में ही मेरा जन्म हो, यह मेरे वश की बात नहीं ।
(iii) कवि रसखान स्वयं को किस गिरी का पत्थर बनाना चाहते हैं ?
उत्तर- कवि रसखान स्वयं को उस गिरी का पत्थर बनाना चाहते हैं, जिसे उन्होंने इंद्र का गर्व चूर्ण करने के लिए छत्र की भातिं उठा लिया था |

2. धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी |
खेलत खात फिरैं अँगना, पग-पैंजनी बाजति पोरी कछोटी ॥
वा छवि को रसखानि बिलोकत, वारत काम कला निज कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी, हरि-हाथ सों ले गयो माखन-रोटी ॥
(i) मधुर ध्वनि कहाँ से आ रही है?
उत्तर- श्रीकृष्ण के चलने-फिरने के कारण उनके पैरों में पहनी हुई पैंजनियों से मधुर ध्वनि होती है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – गोपी कहती है कि उस कौए के भाग्य की कहाँ तक सराहना करें जो श्रीकृष्ण के हाथ से मक्खन और रोटी छीन ले गया। गोपी के कथन का आशय है कि उस कौए से बढ़कर सौभाग्यशाली कौन हो सकता है जिसे श्रीकृष्ण की जूठन खाने का सौभाग्य प्राप्त है।
(iii) इन पंक्तियों में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- सरस मधुर ब्रजभाषा का प्रयोग ।

3. मोर- पखा सिर ऊपर राखिहों, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओदि पितम्बर लै लकुटी, बन गोधन ग्वारन संग फिरौंगी।
भावतो वोहि मेरो रसखानि, सो तेरे कहें सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरौंगी ॥
(i) गोपी अपने होठों पर क्या रखने से मना करती है?
उत्तर- गोपी अपने होठों पर बाँसुरी रखने से मना करती है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – गोपी कहती है कि ठीक है मैं मोर के पंखों का मुकुट भी सिर पर रख लूँगी, गले में गुंजाओं की माला भी पहन लूँगी।
(iii) इन पंक्तियों में किस छन्द का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- सवैया छन्द ।

बहुविकल्पीय प्रश्न

 
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#1. कादम्बिनी पत्रिका है

#2. कामायनी की विधा है

#3. धुर्वस्वामिनी के रचनाकार हैं

#4. इनमे से कहानी है

#5. यशोधरा के रचनाकार हैं

#6. सुमित्रानंदन पन्त की रचना है

#7. छायावादोत्तर काल की पत्रिका है

#8. पृथ्वी पुत्र के रचनाकार हैं

#9. जहाँ किसी बस्तु की तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु से की जाती है

#10. उपमा अलंकार के कितने अंग होते हैं

#11. उपमेय अलंकार का अंग नहीं है

#12. जिस वस्तु या प्राणी की तुलना की जाती है उसे कहते हैं

#13. जिस प्रसिद्ध वस्तु से उपमेय की तुलना की जाती है उसे कहते हैं

#14. कोटि कुलिस सम वचन तुम्हारा — पंक्ति में अलंकार है

#15. आए महंत बसंत ‘– पंक्ति के अलंकार है

#16. दोहा छन्द के विपरीत छन्द होता है

#17. सोरठा है

#18. जिस छन्द के प्रत्येक चरण में एक समान मात्राएँ होती हैं उस छन्द को कहा जाता है

#19. छन्द के चरण को ही कहा जाता है

#20. छन्द में प्रायः चार पंकितयाँ होती हैं ! प्रत्येक पंकित को कहा जाता है छन्द का

#21. वर्ण , गति , विरामे , मात्रा एवं तुक के नियमो से आबद्ध रचना को कहा है

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