निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित दिए, गए प्रश्नों के उत्तर हल सहित |
1. चरन-कमल बंदौं हरि राइ ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे, अंधे को सब कुछ दरसाइ ॥
बहिरौं सुने, गूँग पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराइ।
‘सूरदास’ स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौ तिहिं पाइ ॥
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- सन्दर्भ – प्रस्तुत वन्दना पद महाकवि सूरदास हिन्दी साहित्य गगन के सूर्य हैं। ‘सूरसागर’ इनके पदों का विशाल तथा उत्तम संग्रह है। प्रस्तुत पद ‘सूरसागर’ से लिया गया है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या- हे प्रभू ! मैं आपके कमल सदृश चरणों की वन्दना करता हूँ। इन चरणों में वह शक्ति है कि लँगड़ा पर्वत को लाँघ सकता है, अंधा सब कुछ देखने लगता है।
(iii) इन पंक्तियों में किस अलंकार का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- रूपक अलंकार ।
2. अबिगत-गति कछु कहत न आवै।
ज्यौं गूँगे मीठे फल को रस अंतरगत ही भावै ॥
परम स्वाद सबही सु निरंतर अमित तोष उपजावै।
मन-बानी को अगम अगोचर, सो जानैं जो पावै ॥
रूप-रेख-गुन-जाति- जुगति-बिनु निरालंब कित धावै।
सब बिधि अगम विचारहिं तातें ‘सूर’ सगुन-पद गावै ॥
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- सन्दर्भ – महाकवि सूरदास हिन्दी साहित्य गगन के सूर्य हैं। ‘सूरसागर’ इनके पदों का विशाल तथा उत्तम संग्रह है। प्रस्तुत पद ‘सूरसागर’ से लिया गया है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या- निर्गुण भक्ति में क्या आनन्द है, यह भी बताया नहीं जा सकता। यह तो ऐसा ही है कि किसी गूँगे मनुष्य को मीठे फल खिलाकर उससे उन फलों का स्वाद पूछा जाये। गूँगे मनुष्य को फलों का रस अन्दर ही अन्दर स्वादिष्ट तो अनुभव होता है परन्तु अनुभव करके भी वह इसके स्वाद का वर्णन नहीं कर पाता ।
(iii) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने क्या बताना चाहा है?
उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने सगुण-भक्ति की महत्ता का उल्लेख किया है।
3. ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं ।
वृन्दावन गोकुल बन उपवन, सघन कुंज की छाहीं ॥
प्रात समय माता जसुमति अरु नंद देखि सुख पावत।
माखन रोटी दयौ सजायौ, अति हित साथ खवावत ॥
गोपी ग्वाल बाल सँग खेलत, सब दिन हँसत सिरात ।
‘सूरदास’ धनि धनि ब्रजवासी, जिनसौं हित जदुतात ॥
(i) किसको ब्रज भुलाए नहीं भूलता है और क्यों?
उत्तर- श्रीकृष्ण को ब्रज भुलाए नहीं भूलता है; क्योंकि उन्हें वृन्दावन तथ गोकुल में बिताए क्षणों की याद आती रहती है। वहाँ के वन-उपवन, माता यशोदा का माखन-रोटी खिलाना, नन्द बाबा का उन्हें देखकर खुश होना तथा ग्वाल-बालों के साथ खेलना भुलाए नहीं भूलता है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – वृन्दावन और गोकुल के वन, उपवन तथा कुंजों की घनी छाँव भी मुझसे भुलाए नहीं भूलती। प्रातःकाल यशोदा माता और नन्दजी मुझे देखकर अत्यधिक आनन्दित होते थे। माता यशोदा दही, मक्खन और रोटी को अत्यधिक प्रेम के साथ मुझे खिलाती थीं
(iii) इन पंक्तियों में किस शैली का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- भावात्मक शैली ।
4. ऊधौ मन न भए दस बीस।
एक हुतौ सो गयौ स्याम सँग, को अवराधै ईस ॥
इंद्री सिथिल भई केसव बिनु, ज्यौं देही बिनु सीस ।
आसा लागि रहति तन स्वासा, जीवहिं कोटि बरीस ॥
तुम तौ सखा स्याम सुन्दर के, सकल जोग के ईस ।
‘सूर’ हमारें नंदनंदन बिनु, और नहीं जगदीस ॥
(i)इन पंक्तियों में गोपियाँ उद्धव जी से क्या कहती हैं?
उत्तर- गोपियाँ उद्धव जी से कहती हैं कि हम अपने प्रभु के विरह में आकुल हैं और हमारे प्रिय श्रीकृष्ण आप के मित्र भी हैं अत: आप श्रीकृष्ण का हम से मिलन कराने की कृपा करें।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या- हमारे पास तो एक ही मन था, वह भी श्रीकृष्ण के साथ चला गया। अब हम किस मन से तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की आराधना करें? श्रीकृष्ण के बिना हमारी इन्द्रियाँ उसी प्रकार शिथिल अर्थात् शक्तिहीन और निर्बल हो गई हैं जैसे बिना सिरवाला धड़ शिथिल और बेकार हो जाता है।
(iii) गोपियाँ किसे अपना ईश्वर मानती हैं?
उत्तर- गोपियाँ नन्द के नन्दन अर्थात् श्रीकृष्ण को अपना एकमात्र ईश्वर मानती हैं।
5. निरगुन कौन देस कौ बासी ?
मधुकर कहि समुझाइ सौंह दै, बुझति साँच न हाँसी ॥
को है जनक, कौन है जननी, कौन नारि को दासी?
कैसौ बरन, भेष है कैसो, किहिं रस मैं अभिलाषी ?
पावैगौ पुनि कियौ आपनौ, जौ रे कहेंगौ गाँसी ।
सुनत मौन वै रह्यौ बावरौ, ‘सूर’ सबै मति नासी ॥
(i) गोपियाँ किसको लक्ष्य कर अपनी खीझ उतारती हैं?
उत्तर- गोपियाँ भौंरे को लक्ष्य कर अपनी खीझ उतारती हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या-गोपियाँ उद्धव जी से कहती हैं कि हम जानना चाहती हैं कि उसके पिता कौन हैं? माता कौन हैं ? कौन उसकी पत्नी है और कौन दासी है !यदि तुम कपट करोगे तो उसका फल स्वयं पाओगे। सूरदास कहते हैं कि गोपियों के ऐसे तर्कपूर्ण प्रश्न सुनकर उद्धव किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गए और उनका विवेक समाप्त हो गया।
(iii) मधुकर किसे कहा गया है? उसे किस बात की सौगन्ध खिलाई जा रही है?
उत्तर- मधुकर’ उद्धव को कहा गया है। उन्हें इस बात की सौगन्ध खिलाई जा रही है कि वे गोपियों को निर्गुण ब्रह्म का परिचय बिल्कुल सही-सही दें।



