स्वदेश प्रेम(रामनरेश त्रिपाठी)

निम्नलिखित पद्यांशों पर आधारित दिए, गए प्रश्नों के उत्तर हल सहित |

1. अतुलनीय जिनके प्रताप का, साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर ।
घूम-घूम कर देख चुका है, जिनकी निर्मल कीर्ति निशाकर ॥
देख चुके हैं जिनका वैभव, ये नभ के अनन्त तारागण ।
अगणित बार सुन चुका है नभ, जिनका विजय घोष रण-गर्जन ॥
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।
उत्तर- सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश ‘स्वदेश प्रेम’ शीर्षक कविता से उद्धृत किया गया है जिसके रचयिता कविवर श्री रामनरेश त्रिपाठी है |
(ii) हमें कौन से पुर्वजों का स्मरण करना चाहिए?
उत्तर- हमें उन पूर्वजों का स्मरण करना चाहिए जिनके अनुपम प्रताप का साक्षी सूरज आज भी दे रहा है।
(iii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – हमारे पूर्वज ऐसे थे जिनके ऐश्वर्य को तारों का अनंत समूह बहुत पहले देख चुका था।
(iv)इन पंक्तियों में किस अलंकार का प्रयोग किया गया है?
उत्तर- अनुप्रास, रूपक तथा उपमा अलंकार ।