हाई स्कूल – कवि परिचय -2

सूरदास

जीवन परिचय – सूरदास सगुणमार्गीय कृष्ण-भक्तिशाखा के प्रमुख कवि हैं। कहा जाता है कि उनका जन्म सन् 1478 ई० में आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित रुनकता के निकट साही गाँव में हुआ था। वे सारस्वत ब्राह्मण थे। उनके पिता का नाम रामदास था। कुछ विद्वान उनका जन्म दिल्ली के निकट सीही गाँव में मानते हैं। वे बचपन से ही विरक्त हो गए थे और गऊघाट में रहकर विनय के पद गाया करते थे। एक बार बल्लभाचार्य गऊघाट पर रुके। सूरदास ने उन्हें स्वरचित रचनाओं ‘से एक पद गाकर सुनाया। बल्लभाचार्य ने इनको कृष्ण की लीला का गान करने का सुझाव दिया। वे बल्लभाचार्य के शिष्य बन गए तथा ‘भागवत’ का अध्ययन किया और गुरुजी की आज्ञानुसार भागवत का अनुवाद करते हुए कृष्ण की लीलाओं का गान करने लगे। बल्लभाचार्य ने उनको गोवर्धन पर बने श्रीनाथजी के मन्दिर में कीर्तन करने के लिए रख लिया। बल्लभाचार्य पुत्र विट्ठलनाथ ने अष्टछाप के नाम से आठ कृष्ण-भक्त कवियों का संगठन किया। सूरदास अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। उनकी मृत्यु पारसौली ग्राम में सन् 1583 ई० के लगभग हुई।
रचनाएँ- सूरसागर , सूर-सारावली तथा साहित्य-लहरी आदि

महादेवी वर्मा

जीवन-परिचय- वेदना की साकार मूर्ति सुश्री महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 ई० में ‘फर्रुखाबाद’ नगर में होली के दिन’ हुआ था। इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा एक अच्छे विद्वान थे। इनकी माता ‘हेमरानी’ भी अच्छी विदुषी थीं । केवल 9 वर्ष की अवस्था में ही इनका विवाह रूपनारायण सिंह के साथ हो गया। विवाह के बाद एम०ए० तक शिक्षा प्राप्त की, संगीत और चित्रकला में इनकी विशेष रुचि थी। आप प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या रहीं तथा उपकुलपति पद पर भी आसीन रहीं । उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें विधान परिषद् की सदस्या नियुक्त कर सम्मानित किया। भारत के राष्ट्रपति ने इन्हें ‘पद्मश्री’ की उपाधि से सुशोभित किया । हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने इन्हें ‘नीरजा’ पर 500 रु० का सेक्सरिया पुरस्कार तथा ‘यामा’ पर 1200 रु० का ‘मंगलाप्रसाद’ पारितोषिक देकर सम्मानित किया। पति द्वारा परित्यक्ता होने के कारण इनका जीवन वेदनामय रहा। इनके साहित्य में भी उसी वेदना की टीस है। इन्होंने ‘चाँद’ नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया। इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 11 सितम्बर, 1987 को महादेवी जी का स्वर्गवास हो गया ।
महादेवी जी का आधुनिक हिन्दी साहित्य के निर्माताओं में विशेषकर छायावादी कवियों में विशिष्ट स्थान है।
रचनाएँ – इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सान्ध्य गीत’, ‘दीपशिखा’ और ‘यामा’ हैं।

राम नरेश त्रिपाठी

जीवन-परिचय – हिन्दी के ख्याति प्राप्त कवि रामनरेश त्रिपाठी का जन्म सन् 1889 ई० में जौनपुर जिले के ‘कोइरीपुर’ स्कूल में नामक गाँव में हुआ था। ये जाति से ब्राह्मण थे। इनके पिता पं० रामदत्त त्रिपाठी भगवद्भक्त ब्राह्मण थे। त्रिपाठी जी अधिक नहीं पढ़े किन्तु स्वाध्याय और देशाटन से इन्होंने असाधारण ज्ञान प्राप्त कर लिया था। भारतीय ग्रामों से त्रिपाठी जी को विशेष प्रेम और सहानुभूति थी । हिन्दी साहित्य परिषद् की इतिहास परिषद् के आप सभापति रह चुके हैं।
रचनाएँ – 1. मिलन, 2. पथिक, 3. स्वप्न, 4. मानसी, 5. कविता कौमुदी, 6. ग्राम्य गीत, तथा 7. शिक्षा बावनी ।

माखनलाल चतुर्वेदी

जीवन-परिचय – श्री माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जनपद में ‘बाबई’ नामक गाँव में सन् 1889 ई० में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० नन्दलाल चतुर्वेदी था। गाँव की पाठशाला में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर घर पर ही संस्कृत, गुजराती, बंगला और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन किया। कुछ दिन अध्यापक रहे। सन् 1913 ई० में इन्हें ‘प्रभा’ नाम की प्रसिद्ध पत्रिका का सम्पादक नियुक्त किया गया। देशप्रेम की भावना इनके हृदय में कूट-कूट कर भरी थी। गणेश शंकर विद्यार्थी का सम्पर्क मिला तो उनसे प्रेरणा प्राप्त कर ये राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेने लगे। कई बार जेलयात्रा की। भारत और भारतीय संस्कृति से इन्हें असीम प्रेम था जिसकी झलक इनके सम्पूर्ण काव्य में दिखाई पड़ती है। इसी कारण इन्हें ‘एक भारतीय आत्मा’ नाम से पुकारा जाता था। इन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया। सागर विश्वविद्यालय ने इन्हें डी-लिट्० तथा भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। सन् 1968 ई० में इनका परलोकवास हो गया ।
रचनाएँ – 1. हिमतरंगिणी, 2. रामनवमी, 3. युगचरण, 4. समर्पण, 5. हिम-किरीटिनी, तथा 6. वेणु लो गूँजे धरा ।