हाई स्कूल – कवि परिचय -1

अशोक बाजपेयी

जीवन-परिचय- अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी, 1941 ई० को दुर्ग (म०प्र०) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा सागर में प्राप्त की। सन् 1960 में आपने सागर विश्वविद्यालय से ही बी०ए० की उपाधि प्राप्त की । तदुपरान्त सन् 1963 में दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम०ए० किया और यहीं दयालसिंह कॉलेज में प्राध्यापक पद पर नियुक्ति प्राप्त की। दो वर्षों तक आपने यहाँ अध्यापन कार्य बड़ी ही निष्ठा से किया। इसके बाद आपने आई०ए०एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा मध्य प्रदेश शासन भोपाल में विशेष सचिव, संस्कृति एवं प्रकाशन विभाग में नियुक्त किया गया। इसी पद पर रहते हुए आपने अनेक वर्षों तक ‘पूर्वग्रह’ पत्रिका का सफल सम्पादन किया। वाजपेयी जी सन् 1959 ई० से निरन्तर हिन्दी साहित्य साधना में रत हैं। हिन्दी जगत को आपसे भारी अपेक्षाएँ हैं।
रचनाएँ- ‘शहर अब भी सम्भावना है’, ‘एक पतंग अनन्त में’, ‘कहीं नहीं वहीं’, ‘उम्मीदों का दूसरा नाम’, ‘कुछ रफू कुछ बिगड़े’, ‘दुःख चिट्ठीरसा’, ‘अपनी’ आसन्नप्रसवा माँ के लिए’, ‘विदा’, ‘वे बच्चे’, ‘युवा जंगल’, ‘शरण्य’, ‘शेष’, ‘सद्यस्नाता’ तथा ‘सूर्य समय से अनुरोध’ आदि।

श्याम नारायण पाण्डेय

जीवन-परिचय- श्री श्यामनारायण पाण्डेय का जन्म सन् 1907 ई० में उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ जिले के ग्राम डुमराँवमऊ में हुआ था । इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के विद्यालय में ही हुई । इसके बाद वे संस्कृत के अध्ययन के लिए काशी चले गए। काशी में रहकर इन्होंने काशी विद्यापीठ से हिन्दी में साहित्याचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की। काशी निवास-काल से ही ये काव्य रचनाएँ करने लगे थे। इनकी मृत्यु 84 वर्ष की आयु में इनके गाँव में ही सन् 1991 ई० में हो गयी थी ।
रचनाएँ- ‘हल्दीघाटी , जौहर , तुमुल, रूपान्तर, आरती, जय-पराजय, गोरा वध तथा जय हनुमान आदि

केदार नाथ सिंह

जीवन-परिचय- श्री केदारनाथ सिंह का जन्म सन् 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया ग्राम में हुआ था। आपने 1956 ई० में बनारस विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय में एम० ए० तथा 1964 ई० में पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। अनेक कॉलेजों में अध्यापन के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से अवकाश प्राप्त किया।
केदारनाथ सिंह को ‘अकाल में सारस’ कविता संग्रह के लिए 1989 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार (केरल), दिनकर पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान (उड़ीसा) तथा व्यास सम्मान से मुशोभित किया गया। आप समकालीन कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं।
आपकी कविताओं में ग्रामीण एवं नगरीय परिवेश का द्वन्द्व स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। ‘बाघ’ आपकी प्रमुख कविता है जो मील का पत्थर मानी जाती है। दिल्ली की हिन्दी अकादमी का दो लाख का सर्वोच्च शलाका सम्मान आपके द्वारा सन् 2010 में ठुकराया गया । कविता के अतिरिक्त निबन्ध साहित्य, समीक्षा साहित्य पर भी आपने लेखनी चलाई है। श्री केदारनाथ सिंह बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार हैं। अभी हिन्दी जगत को आपसे बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ हैं।
रचनाएँ- ‘अकाल में सारस’, ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ’, ‘बाघ’, ‘अँधेरे पाख का चाँद’, ‘एक नए दिन के साथ’, ‘गर्मी में सूखते हुए कपड़े’, ‘घड़ी’, ‘खोल हूँ यह आज का दिन’, ‘जनहित का काम’, ‘दाने दिशा’, ‘दुपहरिया’, ‘नदी’, ‘पाँचवीं चिट्ठी’, ‘पानी में घिरे हुए लोग’, प्रक्रिया’, ‘फसल’, ‘फागुन का गीत’, ‘बनारस’, ‘बढ़ई और चिड़िया’, ‘बसन्त’, ‘बुनाई का गीत’, ‘मुक्ति’, ‘मैच और मचान’, यह पृथ्वी रहेगी’, ‘शहर में रात’, ‘शाम बेच दी हैं, ‘हक दो’, ‘सुई और तागे के बीच में’, ‘सार्त्र की कब्र पर’, ‘सन् 47 को याद करते हुए आदि

मैथिलीशरण गुप्त

जीवन-परिचय- हिन्दी साहित्य के गौरव राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सन् 1886 ई० में चिरगाँव जिला झाँसी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। आपके पिता सेठ रामशरण गुप्त हिन्दी के अच्छे कवि थे। सन् 1899 ई० में आपकी कविताएँ ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित होनी शुरू हो गयीं। आपके चार भाई और थे। सियारामशरण गुप्त आपके अनुज हिन्दी के आधुनिक कवियों में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। गुप्त जी की प्रारम्भिक शिक्षा, घर पर ही हुई। उसके पश्चात अँग्रेजी की शिक्षा के लिए झाँसी भेजे गये परन्तु शिक्षा का क्रम अधिक न चल सका। घर पर ही आपने बंगला, संस्कृत और मराठी का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय विषयों पर लिखने के कारण वे राष्ट्रकवि कहलाये। ‘साकेत’ काव्य पर आपको ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ ने ‘मंगलाप्रसाद’ पारितोषिक प्रदान किया था।
गुप्त जी को आगरा विश्वविद्यालय ने डी०लिट्० की मानद उपाधि से अलंकृत किया। सन् 1954 ई० में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ के अलंकरण से इन्हें विभूषित किया। वे दो बार राज्य सभा के सदस्य भी मनोनीत किये गये थे। सरस्वती का यह महान उपासक 12 दिसम्बर सन् 1964 ई० को परलोकगामी हो गया।
रचनाएँ – रंग में भंग, जयद्रथ वध, पद्य प्रबन्ध, भारत भारती, शकुन्तला, पद्मावती, वैतालिकी, किसान, पंचवटी, स्वदेश संगीत, गुरु तेग बहादुर, हिन्दू शक्ति, सैरन्ध्री, वन वैभव, बक संहार, झंकार, साकेत, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, विकट भट, मौर्य-विजय, मंगलघट, त्रिपथगा, गुरुकुल, काबा और कर्बला, अजित, कुणाल गीत आदि।