डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
जीवन-परिचय – भारतरत्न डॉ० राजेन्द्र का जन्म सन् 1884 ई० में बिहार प्रदेश में छपरा जनपद के ‘जीरादेई’ नामक गाँव में हुआ था । कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम०ए० तथा एम०एल० की परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया। कुछ समय मुजफ्फरपुर कालेज में अध्यापक रहे। सन् 1911 से 1920 ई० तक वकालत की। सन् 1920 ई० में गांधी जी से प्रभावित होकर देशसेवा के कार्य में लग गये । काँग्रेस के तीन बार सभापति चुने गये। सन् 1952 से 1962 ई० तक भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति पद को अलंकृत किया। राजेन्द्र बाबू अपनी सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, निर्भीकता, देशभक्ति, सज्जनता और सादगी के लिए प्रसिद्ध थे। सन् 1963 में पटना के सदागत आश्रम में उनका स्वर्गवास हो गया।
रचनाएँ- भारतीय शिक्षा, गांधी जी की देन, साहित्य, शिक्षा और संस्कृति, मेरी आत्मकथा, बापू के कदमों में, मेरी यूरोप यात्रा, संस्कृति का अध्ययन, चम्पारन में महात्मा गांधी, खादी का अर्थशास्त्र आदि ।
जय प्रकाश भारती
जीवन परिचय – प्रसिद्ध पत्रकार एवं लेखक श्री जयप्रकाश भारती का जन्म सन् 1936 ई० में मेरठ (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। हिन्दी की साहित्यिक शैली में वैज्ञानिक लेख प्रस्तुत करने में उन्हें विशेष सफलता और ख्याति मिली। उनके पिता श्री रघुनाथ सहाय एडवोकेट मेरठ के पुराने काँग्रेसी और समाजसेवी थे। भारती ने मेरठ में ही बी०एस-सी० तक अध्ययन किया। उन्होंने छात्र-जीवन में ही समाजसेवी संस्थाओं में भाग लेना आरम्भ कर दिया था। मेरठ में साक्षरता प्रसार के कार्य में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा तथा वर्षों तक उन्होंने निःशुल्क प्रौढ़ रात्रि-पाठशाला संचालित की। सम्पादन कला विशारद करके उन्होंने ‘दैनिक प्रभात’ (मेरठ) तथा ‘नवभारत टाइम्स’ (दिल्ली) में पत्रकारिता का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। साक्षरता निकेतन (लखनऊ) में नवसाक्षर साहित्य-लेखन का विशेष प्रशिक्षण भी लिया। 69 वर्ष की अवस्था में लम्बी बीमारी के कारण 5 फरवरी, 2005 को मेरठ में आपका असामयिक निधन हो गया।
रचनाएँ-‘सरदार भगतसिंह’, ‘हमारे गौरव के प्रतीक’, ‘अस्त्र-शस्त्र आदिम युग से अणु युग तक’, ‘उनका बचपन यूँ बीता’, ‘ऐसे थे हमारे बापू’, ‘लोकमान्य तिलक’, ‘बर्फ की गुड़िया’, ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’, ‘भारत का संविधान’, ‘दुनिया रंग-बिरंगी’ आदि ।
जय शंकर प्रसाद
जीवन-परिचय- कोमल भावनाओं के चितेरे, छायावादी युग के निर्माता, नाटक सम्राट कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई० में ‘काशी’ के प्रसिद्ध जर्दा विक्रेता श्री देवी प्रसाद जी के यहाँ हुआ था। इनके पिता काशी के प्रसिद्ध दानी थे। बालक जयशंकर केवल बारह वर्ष के थे और सातवीं कक्षा में पढ़ते थे कि इनके पिता परलोकवासी हो गये और घर का सारा भार इनके कंधों पर आ पड़ा। घर पर हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेजी का अध्ययन किया। माता, पिता, भाई, दो पत्नी तथा एक पुत्र संसार से विदाई देकर इनका पारिवारिक जीवन दुःखों से घिर गया। यह सब कुछ होते हुए भी सरस्वती के इस पुत्र ने हिन्दी जगत की बहुत सेवा की। आपका जीवन सरल था। भारतीय दर्शन, इतिहास, संस्कृत साहित्य विशेष रूप से बौद्ध साहित्य पर प्रसाद जी का गहरा अध्ययन था। सन् 1937 ई० में आपका देहावसान हो गया ।
रचनाएँ-चित्रधारा, कानन कुसुम, करुणामय, महाराणा का महत्त्व, प्रेम पथिक, झरना, आँसू, लहर, कामायनी, राज्यश्री, अजातशत्रु, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, विशाख, कामना, जन्मेजय का नागयज्ञ, एक घूँट, सज्जन, चन्द्रगुप्त, कल्याणी परिचय, प्रायश्चित, कंकाल, तितली, आँधी, इन्द्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि आदि ।
रामधारी सिंह दिनकर
जीवन परिचय – हिन्दी साहित्य के दिनकर श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 23 सितम्बर, 1908 ई० में बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया ग्राम में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण एवे के पश्चात् उन्होंने कुछ दिनों के लिए उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक का कार्य सँभाला। तत्पश्चात् ये कारी नौकरी में चले आए। उनकी सरकारी सेवा अवर-निबन्धक के रूप में प्रारम्भ हुई। बाव में वे प्रचार विभाग के उप निदेशक पद पर स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद तक कार्य करते रहे। तदनन्तर उन्होंने कुछ समय तक बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया। सन् 1952 में उन्हें राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्रप्रसाद द्वारा राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया गया। कुछ समय तक दिनकर जी भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। उसके पर तू भारत सरकार के गृह- विभाग में हिन्दी सलाहकार के रूप में दीर्घकाल तक हिन्दी के संबर्धन एवं प्रचार-प्रसार में लगे रहे। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। सन् 1959 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया तथा सन् 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय ने डी०लिट्० की उपाधि प्रदान की। प्रतिनिधि लेखक व कवि के रूप उन्होंने अनेक विदेश– यात्राएँ कीं । दिनकर जी का असामयिक देहावसान 25 अप्रैल, 1974 ई० में हुआ।
रचनाएँ- ‘रेणुका’, ‘हुंकार’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’ और ‘परमुख की प्रतिमा’ (काव्य), ‘अर्द्धनारीश्वर’, ‘वट-पीपल’, ‘उजली आग’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’ (निबन्ध), ‘देश-विदेश (यात्रा) आदि
