ममता (जयशंकर प्रसाद )

निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित दिए, गए प्रश्नों के उत्तर हल सहित |

गद्यांश -1

रोहतास-दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता, शोण के तीक्ष्ण गम्भीर प्रवाह को देख रही है। ममता विधवा थी। उसका यौवन शोण के समान ही उमड़ रहा था। मन में वेदना, मस्तक में आँधी, आँखों में पानी की बरसात लिए, वह सुख कंटक-शयन में विकल थी। वह रोहतास-दुर्गपति के मन्त्री चूड़ामणि की अकेली दुहिता थी, फिर उसके लिए कुछ अभाव होना असम्भव था, परन्तु वह विधवा थी — हिन्दू-विधवा संसार में सबसे तुच्छ निराश्रय प्राणी है-तब उसकी विडम्बना का कहाँ अन्त था?
(क) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर : (क) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘गद्य-खण्ड’ के ‘ममता’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक जयशंकरप्रसाद हैं।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या-जिस प्रकार सोन नदी उफनकर बह रही है, उसी प्रकार ममता का यौवन भी पूरी तरह उफान पर है। उसके यौवन में और सोन नदी के उमड़ते प्रवाह में अद्भुत समानता है। वह रोहतास- दुर्गपति के मन्त्री-चूड़ामणि की इकलौती पुत्री है। वह हर प्रकार के भौतिक सुख से सम्पन्न है, फिर भी हिन्दू-विधवा-जीवन के कठोर अभिशाप से उसका मन तरह-तरह के विचारों और भावों की आँधी से भरा हुआ है। उसकी आँखों से दुःख के आँसू बह रहे हैं। विलासिता का सुख भी उसको काँटों की दुःखपूर्ण शय्या के समान प्रतीत हो रहा है। तात्पर्य यह है कि काँटों की शय्या पर सोनेवाला व्यक्ति जिस प्रकार हर पल बेचैन रहता है, उसी प्रकार सभी प्रकार के भौतिक सुखों के रहते हुए भी ममता का जीवन कष्टदायक सिद्ध हो रहा है।
(ग) उपर्युक्त गद्यांश में हिन्दू-विधवा की स्थिति कैसी है?
उत्तर :(ग) समाज में हिन्दू-विधवा की स्थिति अत्यन्त दयनीय होती है। उसे समाज का सबसे तुच्छ (दीन-हीन) और बेसहारा प्राणी माना जाता है।
(घ) ममता कौन थी? वह क्या देख रही थी?
उत्तर :(घ) ममता रोहतास-दुर्गपति के मन्त्री चूड़ामणि की विधवा पुत्री थी। वह अपने यौवन के समान उमड़ते शोण नदी के तीक्ष्ण प्रवाह को देख रही थी । यद्यपि वह भौतिक सुख-सुविधाओं से सम्पन्न थी, किन्तु वैधव्य की वंचनाओं के कारण वह उन सुख-सुविधाओं के होते हुए भी भीतर से अत्यन्त व्याकुल थी।

गद्यांश -2

हे भगवान! तबके लिए! विपद के लिए! इतना आयोजन ! परम पिता की इच्छा के विरुद्ध इतना साहस ! पिताजी. क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दू भू-पृष्ठ पर न बचा रह जायेगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके ? यह असंभव है। फेर दीजिए पिताजी, मैं काँप रही हैं-इसकी चमक आँखों को अंधा बना रही है।”
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- (अ) सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘ममता’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है जिसके लेखक श्री जयशंकर प्रसाद हैं।
(ब) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या -ममता कहती है-पिताजी! भगवान जिसे दुःख देना चाहता है क्या वह कभी सुखी हो सकता है? यह कितना बड़ा भ्रम है? भगवान की इच्छा के विरुद्ध यह आपका बहुत बड़ा दुःसाहस है। प्रभु जिसे दुःखी रखना चाहता है, सोना-चाँदी उसे सुखी नहीं कर सकता। राजा हार जायेगा, तबके लिए यह उत्कोच, हम तो ब्राह्मण हैं, भिक्षा से गुजारा कर सकते हैं। क्या तब कोई हिन्दू इस पृथ्वी पर नहीं मिलेगा जो हमें उदरपूर्ति हेतु थोड़ा-सा अनाज दे सके ? आप इस उत्कोच को लौटा दीजिए। मैं काँप रही हूँ। इस उत्कोच राशि की चमक से मेरी नेत्र ज्योति समाप्त हो रही है, मैं इसे देख भी नहीं सकती हूँ।
(स)अपने पिता का कौन-सा कृत्य ममता को परमपिता की इच्छा के विरुद्ध लगा?
उत्तर-(स)आपत्तिकाल के लिए शत्रु की रिश्वत को ममता परमपिता परमेश्वर की इच्छा के विपरीत समझ रही है।
(द) उपर्युक्त गद्यांश में किस कार्य को ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध बताया गया है?
उत्तर- (द) प्रस्तुत गद्यांश में उत्कोच को ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध बताया गया है। ममता कहती है कि हे पिताजी! इसे लौटा दीजिए, इसकी चमक से मेरे नेत्रों की ज्योति समाप्त हो रही है।

गद्यांश -3

मैं नहीं जानती कि वह शहंशाह था या साधारण मुगल पर एक दिन इसी झोंपड़ी के नीचे वह रहा। मैंने सुना था कि वह मेरा घर बनवाने की आज्ञा दे चुका था। मैं आजीवन अपनी झोंपड़ी खुदवाने के डर से भयभीत रही। भगवान् सुन लिया, मैं आज इसे छोड़े जाती हैं । अब तुम इसका मकान बनाओ या महल, मैं अपने चिर- विश्राम गृह में जाती हूँ।”
(क) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- (क) सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘ममता’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है जिसके लेखक श्री जयशंकर प्रसाद हैं।
(ख) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- (ख) रेखांकित अंश की व्याख्या–ममता आजीवन उसी झोंपड़ी में रही लेकिन उसे डर लगा रहता था कि बादशाह उस झोंपड़ी को आलीशान भवन बनवाने की बात कहकर गया था। मरते समय घुड़सवार के आने पर वह कहती है कि मैं झोंपड़ी के खोदे जाने से भयभीत थी, अब ईश्वर ने सुन ली, मैं चिर-विश्राम गृह में जाती हूँ। अब तुम इसका महल बनवाओ या मकान, मैं इसे छोड़ रही हूँ।
(ग) आजीवन भयभीत रहने का कारण लिखिए।
उत्तर-(ग) ममता आजीवन इसलिए भयभीत थी कि उसकी झोंपड़ी खोदी जायेगी, इस पर भव्य भवन बनेगा। वह कहाँ रहेगी? राजा की आज्ञा थी अत: भवन-निर्माण हेतु लोग आ सकते थे ।