अशोक के फूल

निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित दिए, गए प्रश्नों के उत्तर हल सहित |

गद्यांश - 1

रवीन्द्रनाथ ने इस भारतवर्ष को ‘महामानवसमुद्र’ कहा है! विचित्र देश है वह! असुर आए, आर्य आए, शक आए, हूण आए, नाग आए, यक्ष आए, गंधर्व आएन जाने कितनी मानव जातियाँ यहाँ आई और आज के भारतवर्ष को बनाने में अपना हाथ लगा गईं। जिसे हम हिन्दू रीति-नीति कहते हैं, वे अनेक आर्य और आर्येतर उपादानों का अद्भुत मिश्रण है।
(क) पाठ का शीर्षक एवं लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर-(क)उपर्युक्त गद्यांश ‘अशोक के फूल’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी हैं ।
(ख) रवीन्द्रनाथ ने किसे महामानव समुद्र कहा है?
उत्तर-(ख) रवीन्द्रनाथ ने भारतवर्ष को ‘महामानव समुद्र’ कहा है।
(ग) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-(ग) रेखांकित अंश की व्याख्या -हम जिसे हिन्दू रीति-नीति कहते हैं, उसकी सरंचना बहुत-सी आर्य एवं आयेतर निर्माण सामग्री के विचित्र संयोग से हुई है।
(घ) भारतवर्ष के निर्माण में किन-किन का सहयोग रहा है?
उत्तर-(घ) आज के भारत के निर्माण में असुर, आर्य, शक, हूण, नाग, यक्ष तथा गन्धर्व आदि न जाने किन-किन मानव जातियों का सहयोग रहा है।
(ङ) आर्य, शक, हूण कहाँ आये?
उत्तर-(ङ) आर्य, शक एवं हम भारतवर्ष में आए।

गद्यांश - 2

अशोक का वृक्ष जितना भी मनोहर हो, जितना भी रहस्यमय हो, जितना भी अलंकारमय हो, परन्तु है वह उस विशाल सामंत-सभ्यता की परिष्कृत रुचि का ही प्रतीक, जो साधारण प्रजा के परिश्रमों पर पली थी. उसके रक्त के संसार कणों को खाकर बड़ी हुई थी और लाखों-करोडों की उपेक्षा से जो समृद्धि हुई थी। वे सामंत उखड़ गए, समाज ढह गए, और मदनोत्सव की धूमधाम भी मिट गयी।
(क) सामन्त सभ्यता की परिष्कृत रुचि का प्रतीक कौन है?
उत्तर-(क) अशोक सामन्त सभ्यता की परिष्कृत रुचि का प्रतीक है।
(ख) लाखों करोड़ों की उपेक्षा से कौन समृद्ध हुई थी?
उत्तर-(ख) सामन्त सभ्यता की परिष्कृत रुचि लाखों-करोड़ों की उपेक्षा से समृद्ध हुई थी।
(ग) आज उस सामन्ती सभ्यता की क्या स्थिति है?
उत्तर-(ग) आज उस सामन्त व्यवस्था का उच्छेद हो चुका है।
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या- अशोक का वृक्ष अलंकार सम्पन्न है लेकिन यह उस विस्तीर्ण सामन्ती शिष्टता की परिशोधित रुचिका चिह्न है जो शिष्टता प्रजा के परिश्रम पर ही पली,बड़ी हुई तथा पनपी है। साधारण प्रजा के रक्त तथा संसार के कण-कण को खा-पीकर विस्तृत हुई है। लाखों एवं करोड़ों जनों की उपेक्षा करके यह समृद्धिशालिनी बनी है।
(ङ) पाठ का शीर्षक तथा लेखक का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर-(ङ) उपर्युक्त गद्यांश ‘अशोक के फूल’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी हैं।

गद्यांश - 3

भगवान् बुद्ध ने मार-विजय के बाद वैरागियों की पलटन खड़ी की थी। असल में ‘मार’ मदन का भी नामान्तर है। कैसा मधुर और मोहक साहित्य उन्होंने दिया। पर न जाने कब यक्षों के वज्रपाणि नामक देवता इस वैराग्यप्रवण धर्म में घुसे और बोधिसत्त्वों के शिरोमणि बन गए, फिर वज्रयान का आपूर्व धर्म मार्ग प्रचलित हुआ। त्रिरत्नों में मदन देवता ने आसन पाया। वह एक अजीब आँधी थी। इसमें बौद्ध बह गए, शैव बह गए, शाक्त बह गए। उन दिनों ‘श्रीसुन्दरीसाधनतत्पराणां योगश्च भोगश्च करस्थ एव’ की महिमा प्रतिष्ठित हुई। काव्य और शिल्प के मोहक अशोक ने अभिचार में सहायता दी।
(क) भगवान् बुद्ध ने मार-विजय के बाद क्या किया?
उत्तर-(क) भगवान् बुद्ध ने मार-विजय के बाद समाज में वैरागियों की बड़ी फौज खड़ी की।
(ख) बोधिसत्त्वों का शिरोमणि कौन बन गया?
उत्तर-(ख) बोधिसत्त्वों का शिरोमणि यक्षों का देवता वज्रपाणि (इन्द्र) बन गया।
(ग) ‘बोधिसत्त्व’ और ‘अभिसार’ शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-(ग) ‘बोधिसत्त्व’ का अर्थ ‘बुद्धत्व प्राप्त करनेवाला’ और ‘अभिचार’ का अर्थ है ‘बुरे कर्मों के लिए मन्त्र का प्रयोग करना ।
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-(घ) उस समय धन और सुन्दरी की प्राप्ति को सर्वोच्च साधन माना गया। इन्हीं दोनों को योग और भोग के रूप में प्राप्त करना जीवन का लक्ष्य बन गया। जिसने इन दोनों का जितना अधिक उपभोग किया, वह उतने प्रतिष्ठित सन्त के रूप में सम्मान पाने लगा।
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर-(ङ) पाठ का शीर्षक-अशोक के फूल। लेखक- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी।

गद्यांश - 4

मुझे मानव जाति की दुर्दम-निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है। मनुष्य की जीवनी-शक्ति बड़ी निर्मम है, वह सभ्यता और संस्कृति के वृया मोहों को रौंदती चली आ रही है। न जाने कितने धर्माचारी, विश्वासों, उत्सवों और व्रतों को धोती बहाती यह जीवन धारा आगे बढ़ी है। संघर्षों से मनुष्य ने नई शक्ति पाई है। हमारे सामने समाज का आज जो रूप है, वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है। देश की जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात है। सब कुछ में मिलावट है, सब कुछ अविशुद्ध है। शुद्ध केवल मनुष्य की दुर्बम जिजीविषा (जीने की इच्छा)। वह गंगा की अबाधित-अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है । सभ्यता और संस्कृति का मोह क्षण-भर बाधा उपस्थित करता है, धर्माचार का संस्कार थोड़ी देर तक इस धारा से टक्कर लेता है, पर इस दुर्दम धारा में सब कुछ बह जाते हैं। जितना कुछ इस जीवनी-शक्ति को समर्थ बनाता है, उतना उसका अंग बन जाता है, बाकी फेंक दिया जाता है। धन्य हो महाकाल, तुमने कितनी बार मदनदेवता का गर्व खण्डन किया है, धर्मराज के कारागार में क्रान्ति मचाई है, यमराज के निर्दय तारल्य को पी लिया है, विधाता के सर्वकर्तृत्व के अभिमाने को चूर्ण किया है !
(क) मनुष्य की जीवनी-शक्ति कैसी है?
उत्तर-(क) मनुष्य की जीवनी-शक्ति बड़ी ही निर्मम है।
(ख) महाकाल क्यों धन्य है?
उत्तर-(ख) महाकाल मदनदेवता का गर्व खण्डित करने वाला है, उसने अनेक बार ऐसा किया है, यमराज के बन्दीगृह तक में क्रान्ति मचाई है अतः वह धन्य है।
(ग) ‘अनाहत’ और ‘कारागार’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-(ग) ‘अनाहत’ शब्द ‘अन + आहत’ से बना है अर्थात जो आहत न हो, भली-भाँति सुरक्षित, निर्बाध बहने वाली धारा । ‘कारागार’ का अर्थ है-जेल अथवा बन्दीगृह ।
(घ) लेखक को क्या स्पष्ट दिखाई दे रहा है?
उत्तर-(घ) लेखक को मानव जाति की अदम्य कठोर धारा के विगत पाँच हजार वर्षों का इतिहास स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
(ङ) मनुष्य ने नई शक्ति किससे पाई है?
उत्तर-(ङ) मनुष्य ने संघर्षों से नई शक्ति पाई है
(च) समाज का वर्तमान रूप किसका प्रतिफल है?
उत्तर-(च) समाज का वर्तमान रूप मनुष्य के ग्रहण और त्याग का प्रतिफल है।
(छ)’धर्माचारों’ और ‘विश्वासों’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-(छ) ‘धर्माचारों’ का अर्थ है- धार्मिक आचार-विचार तथा ‘विश्वासों’ का अर्थ है- आस्थाएँ ।
(ज) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-(ज) रेखांकित अंशों की व्याख्या- (i) मनुष्य की जीवनी-शक्ति बड़ी निर्मम है-
मानव की जीवन-शक्ति बड़ी ही निर्मम प्रतीत होती है। मानव की जीवन-शक्ति ने सभ्यता एवं संस्कृति के मिथ्या आकर्षणों को कुचल दिया है और वे लगातार आगे बढ़ रही है।
(ii) सब कुछ में……………………….भी पवित्र है-
यहाँ सब में मिलावट है कुछ भी पूर्णरूपेण शुद्ध नहीं है। इस मानव की जीवन जीने की इच्छा ही शुद्ध है, वह गंगा की भाँति निर्विघ्न एवं अविरल धारा की भाँति है। जैसे गंगा अपने में सब कुछ लीन करके भी पवित्र वैसे ही जीवनेच्छा अदम्य है, पावन है। सब कुछ अपने में समाहित करने वाली है।
(झ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और उसके लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर-(झ) प्रस्तुत गद्यांश ‘अशोक के फूल’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी हैं।

गद्यांश - 5

अशोक को जो सम्मान कालिदास से मिला, वह अपूर्व था। सुन्दरियों के आसिंजनकारी नूपुरवाले चरणों के मृदु आघात से वह फूलता था, कोमल कपोलों पर कर्णावतंस के रूप में झूलता था और चंचल नील अलकों की अचंचल शोभा को सौ-गुना बढ़ा देता था। वह महादेव के मन में क्षोभ पैदा करता था, मर्यादा पुरुषोत्तम के चित्त में सीता का भ्रम पैदा करता था और मनोजन्मा देवता के एक इशारे पर कन्धे पर से ही फूट उठता था
(क) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर-(क)प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी-साहित्य के सुप्रसिद्ध ललित निबन्धकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘अशोक के फूल’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। यह निबन्ध हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक के गद्य भाग में संकलित है।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-(ख)अशोक के कामोत्तेजक गुणों के कारण ही भगवान् महादेव का हृदय उसके प्रति क्षोभ (क्रोध) से भर गया था। इसी कारण वियोगी राम भी उसकी पुष्पित लता को अपनी प्रिया के स्तन समझकर उसका आलिंगन करने को उद्यत हो गए थे। यह काम के देवता मनोज के एक संकेत पर ऊर्ध्व भाग को इतना कामुक बना देता है, जिसे देखकर ऐसा लगता है मानो व्यक्ति के कन्धों से साक्षात् अशोक का वृक्ष ही फूट पड़ा है।
(ग)अशोक का अत्यधिक वर्णन करके उसे तत्कालीन समाज में सम्मानित स्थान किसने दिलाया?
उत्तर-(ग) अशोक का अत्यधिक वर्णन करके उसे तत्कालीन समाज में सम्मानित स्थान महाकवि कालिदास ने दिलाया।
(घ)अशोक के प्रति महादेव का हृदय किस कारण क्रोध से भर गया था?
उत्तर-(घ) अशोक के प्रति महादेव का हृदय उसके कामोत्तेजक गुणों के कारण क्रोध से भर गया था।
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश में ‘मनोजन्मा देवता’ किसे कहा गया है?
उत्तर-(ङ) उपर्युक्त गद्यांश में ‘मनोजन्मा देवता’ कामदेव को कहा गया है।

गद्यांश - 6

भारतीय साहित्य में, और इसलिए जीवन में भी, इस पुष्प का प्रवेश और निर्गम दोनों ही विचित्र नाटकीय व्यापार हैं। ऐसा तो कोई नहीं कह सकता कि कालिदास के पूर्व भारतवर्ष में इस पुष्प का कोई नाम ही नहीं 5 जानता था; परन्तु कालिदास के काव्यों में यह जिस शोभा और सौकुमार्य का भार लेकर प्रवेश करता है, वह पहले कहाँ था ! उस प्रवेश में नववधू के गृह- प्रवेश की भाँति शोभा है, गरिमा है, पवित्रता है और सुकुमारता है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर-(क) प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी-साहित्य के सुप्रसिद्ध ललित निबन्धकार जीवन आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘अशोक के फूल’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। यह निबन्ध हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक के गद्य भाग में संकलित है।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-(ख)द्विवेदीजी अशोक के वृक्ष की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि प्राचीन भारतीय साहित्य में अशोक के वृक्ष का पर्याप्त उल्लेख मिलता है। अनेक ग्रन्थों में उसके महत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। साहित्य ए क्योंकि समाज का दर्पण होता है; अतः साहित्य में अशोक की महत्ता के प्रतिपादन से यह स्वयं सिद्ध हो जाता है कि तत्कालीन जनजीवन में अशोक को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इसके बाद के साहित्य में अशोक के वृक्ष का उल्लेख प्रायः नहीं मिलता, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि बाद में जनजीवन में ति भी अशोक का कोई महत्त्व नहीं रह गया था। साहित्य और जनजीवन दोनों में इस प्रकार से अशोक का प्रवेश करना और फिर अचानक उससे बाहर हो जाना लेखक को ठीक वैसा ही प्रतीत होता है, जैसे किसी नाटक में कोई पात्र अचानक मंच पर प्रवेश करता है और फिर अचानक ही नाटक से बाहर हो जाता है।
(ग)साहित्य और जनजीवन; दोनों में अशोक का प्रवेश और फिर बाहर हो जाना लेखक को कैसा प्रतीत होता है?
उत्तर-(ग) साहित्य और जनजीवन दोनों में अशोक का प्रवेश और फिर बाहर जाना लेखक को ऐसा प्रतीत होता है, जैसे किसी नाटक में कोई पात्र अचानक मंच पर प्रवेश करता है और फिर अचानक ही उस नाटक से बाहर हो जाता है।.
(घ)अपने काव्य-ग्रन्थों में किसने अशोक की मोहक छटा और उसकी सुकुमारता का सर्वाधिक सुन्दर वर्णन किया है?
उत्तर-(घ) अपने काव्य-ग्रन्थों में कालिदास ने अशोक की मोहक छटा और व उसकी सुकुमारता का सर्वाधिक सुन्दर वर्णन किया है।
(ङ) भारतीय साहित्य में अशोक का प्रवेश अथवा उसके मनमोहक एवं आकर्षक वर्णन का आरम्भ लेखक को किस भाँति प्रतीत होता है?
उत्तर-(ङ) भारतीय साहित्य में अशोक का प्रवेश अथवा उसके मनमोहक एवं आकर्षक वर्णन का आरम्भ लेखक को इस भाँति प्रतीत होता है, जैसा मोहक और आकर्षक दृश्य किसी नई-नवेली दुल्हन के प्रथम गृह प्रवेश का होता है।