पवन- दूतिका(अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’)

दिये गये पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

पद्य -1

बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली ।
आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते ।
आई धीरे इस सदन में पुष्प सद्गंध को ले ।
प्रातः वाली सुपवन इसी काल वातायनों से ॥
संतानों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो ।
धीरे बोलीं स-दुख उससे श्रीमती राधिका यों ।
प्यारी प्रातः पवन क्यों मुझे है सताती ।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से ॥
(i) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश ‘पवन- दूतिका’ शीर्षक कविता से अवतरित है। इसके रचनाकार कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय
‘हरिऔध’ हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – जब पवन के प्रभाव से राधिका का दुःख बहुत बढ़ गया तो उन्होंने दुःखी होकर धीरे-धीरे पवन से कहा कि हे प्रात:कालीन पवन! तू क्यों मुझे इस प्रकार सता रही है? क्या तू भी समय की कठोरता से दूषित हो गई है? क्या तुझ पर भी समय की क्रूरता का प्रभाव पड़ गया है?
(iii) घर में खिन्न अकेलो कौन बैठी थी?
उत्तर- राधा घर में खिन्न अकेली बैठी हुई थी।
(iv) वातायन से कौन आई ?
उत्तर- प्रात:काल की सुन्दर वायु वातायन (झरोखे) के मार्ग से आई।
(v) श्रीमती राधिका किससे क्या बोलीं?
उत्तर- श्रीमती राधिका सुगन्धित वायु से बोली कि तू मुझे इतना क्यों सता रही है।