कहानी बहादुर

'बहादुर' कहानी की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।

उत्तर- ‘बहादुर’ प्रसिद्ध कहानीकार श्री अमरकान्त द्वारा रचित एक मनोवैज्ञानिक और चरित्रप्रधान कहानी है। इसकी कथावस्तु आधुनिक मध्यवर्गीय समाज की दिखावटी मानसिकता से ग्रहण की गई है। कहानी में यह बताया गया है कि आज का मध्यमवर्गीय परिवार स्वयं को समाज में उच्चवर्गीय और प्रतिष्ठित व्यक्ति दिखाने के लिए नौकर रखते हैं, जबकि उनकी आर्थिक स्थिति इसकी इजाजत नहीं देती। परिवार में नौकर के आ जाने पर नौकरों के प्रति उनका व्यवहार कितना असभ्य और क्रूर हो जाता है कि वह मानवता की सारी हदें पार कर जाता है। आलोच्य कहानी की कथावस्तु के केन्द्र में एक ऐसे ही पहाड़ी नौकर बहादुर की कहानी है । कथावस्तु में इस बात को भी मुख्य विषय के रूप में उठाया गया है कि नौकर की भी अपनी मान-प्रतिष्ठा और भावना होती है, भले ही वह बालक क्यों न हो।

'बहादुर' कहानी के शीर्षक एवं उद्देश्य (सन्देश ) पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – इस कहानी का सम्पूर्ण कथानक दिलबहादुर को केन्द्रित करके रचा गया है, इसीलिए इसका ‘बहादुर’ शीर्षक कहानी के लिए सर्वथा उपयुक्त है।
प्रस्तुत कहानी का प्रमुख उद्देश्य समाज के निम्न वर्ग की दुर्दशा और मध्यम वर्ग के झूठे प्रदर्शन तथा शान-शौकत का चित्रण कर निम्न वर्ग के प्रति पाठकों को सहानुभूति जगाना है। निम्न तथा मध्यम, दोनों ही वर्गों के लोग अपनी-अपनी परिस्थितियों से परेशान है। प्रस्तुत कहानी वर्गभेद को मिटाकर समानता की स्थापना का सन्देश देती है।

'बहादुर' कहानी का सारांश (कथानक) अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – दिलबहादुर एक पहाड़ी नेपाली लड़का है, जो इस कहानी का नायक है। वह एक असहाय बालक है। उसके पिता की युद्ध में मृत्यु हो चुकी थी। उसकी माँ उसे बहुत पीटती थी। इसलिए वह घर से भाग आया और उसने एक मध्यमवर्गीय परिवार में नौकरी कर ली।
बहादुर बड़े परिश्रम से घर में काम करने लगा। गृहस्वामिनी निर्मला उसके काम से बहुत खुश थी। निर्मला ने उसका नाम ‘बहादुर’ रखा। बहादुर की मेहनत के कारण मकान साफ-सुथरा रहने लगा और घर में सभी सदस्यों के कपड़े साफ रहने लगे। बहादुर देर रात तक काम करता और सुबह जल्दी उठकर काम में जुट जाता। वह इसी में खुश था और हर समय हँसता रहता था। वह रात को सोते समय पहाड़ी भाषा में कोई गीत गुनगुनाता रहता था। हँसना और हँसाना मानो उसकी आदत बन गई थी।
निर्मला का बड़ा लड़का किशोर एक बिगड़ा हुआ लड़का था। वह शान-शौकत और रोब-दाब से रहने का समर्थक था। उसने अपने सारे काम बहादुर को सौंप दिए थे। यदि बहादुर उसके काम में तनिक-सी भी असावधानी बरतता तो उसे गालियाँ मिलतीं। इतना ही नहीं, वह छोटी-छोटी-सी बात पर बहादुर को पीटता भी देर बाद घर के कार्यों में पूर्ववत् जुट जाता। था। पिटकर बहादुर एक कोने में चुपचाप खड़ा हो जाता और कुछ एक दिन किशोर ने बहादुर को ‘सूअर का बच्चा’ कह दिया। बहादुर इस गाली को सहन न कर सका, उसका स्वाभिमान जाग गया और उसने उसका काम करने से इनकार कर दिया। जब निर्मला के पति ने भी उसे डाँटा
तो उसने कहा-
“बाबूजी, भैया ने मेरे मरे बाप को क्यों लाकर खड़ा किया?”
इतना कहकर वह रो पड़ा।
प्रारम्भ में निर्मला बहादुर को बहुत प्यार से रखती थी तथा उसके खाने-पीने का भी बहुत ध्यान रखती थी, लेकिन कुछ दिनों के बाद उसका व्यवहार भी बदल गया। उसने बहादुर की रोटी सेंकना बन्द कर दिया।
अब घर की स्थिति यह हो गई थी कि जरा-सी गलती होने पर भी किशोर और निर्मला उसे पीटते। मारपीट और गालियों के कारण बहादुर से गलतियाँ और भूलें अधिक होने लगीं। एक रविवार को निर्मला के रिश्तेदार अपनी पत्नी और बच्चों के साथ निर्मला के घर आए। नाश्ता करने के बाद बातों की जलेबी छनने लगी। अचानक उस रिश्तेदार की पत्नी नीचे फर्श पर झुककर देखने लगी और चारपाई पर कमरे के अन्दर भी छान-बीन करने लगी। पूछने पर उसने बताया कि उसके ग्यारह रुपये खो गए हैं, जो उन्होंने चारपाई पर ही निकालकर रखे थे। इसके बाद सबने बहादुर पर सन्देह किया।
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बहादुर से पूछा गया। उसने रुपये उठा लेने से इनकार कर दिया। उसे खूब पीटा भी गया और पुलिस के सुपुर्द करने की धमकी भी दी गई। निर्मला ने भी बहादुर को डराया धमकाया और पीटा। सब सोच रहे थे कि पिटाई के डर से वह अपना अपराध स्वीकार कर लेगा, लेकिन जब उसने रुपये लिए ही नहीं तो वह कैसे कहता कि रुपये उसने उठाए थे। इस घटना के बाद से घर के सभी सदस्य बहादुर को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे और उसे कुत्ते की तरह दुत्कारने लगे।
उस दिन के बाद से बहादुर बहुत ही खिन्न रहने लगा और एक दिन दोपहर को अपना बिस्तर, पहनने के कपड़े, जूते आदि सभी सामान छोड़कर घर से चला गया। निर्मला के पति शाम को जब दफ्तर से लौटे तो उन्होंने निर्मला को सिर पर हाथ रखे परेशान देखा। आँगन गन्दा पड़ा था, बर्तन बिना मँजे पड़े थे और घर का सामान अस्त-व्यस्त था। कारण पूछने पर पता चला कि बहादुर अपना सामान छोड़कर घर से चला गया। निर्मला, उसके पति और किशोर को उसकी ईमानदारी पर विश्वास हो गया था। उन्होंने कहा कि रिश्तेदारों के रुपये भी उसने नहीं चुराए थे। निर्मला, उसका पति और किशोर सभी बहादुर पर किए गए अत्याचारों के लिए पश्चात्ताप करने लगे।