कहानी ध्रुवयात्रा

जैनेन्द्र की कहानी 'ध्रुवयात्रा' की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- ‘ध्रुवयात्रा’ हिन्दी के सुप्रसिद्ध कहानीकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित एक मनोवैज्ञानिक और मार्मिक कहानी है। जैनेन्द्र प्रेमचन्द परम्परा के अग्रणी कहानीकार हैं। इन्होंने मनोवैज्ञानिक कहानियाँ लिखकर हिन्दी – कहानी कला के क्षेत्र में एक नवीन आयाम स्थापित किया है। जैनेन्द्र ने इस कहानी में मानवीय संवेदना को मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण में समन्वित करके एक नवीन विचारधारा को जन्म दिया। कहानी की कथावस्तु में जैनेन्द्र ने एक सुसंस्कारित युवती के उत्कट प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाया है, जिसमें ‘प्रेम’ को नारी से अलग एवं उच्चस्थान दिया है। यह कहानी मनोवैज्ञानिकता के साथ-साथ दार्शनिकता से ओत-प्रोत है। कहानी का प्रत्येक पात्र कर्त्तव्यनिष्ठा एवं नैतिकता के प्रति सचेत दिखाई पड़ता है, जिसकी पूर्णता के लिए वे जीवन अर्पण करने से भी नहीं कतराते हैं। प्रेम की पवित्रता को आदर्शवाद की कसौटी पर कसना कहानी का प्रतिपाद्य रहा है। अपने प्रतिपाद्य को व्यक्त करने में कहानीकार को सफलता तो अवश्य मिल गई, किन्तु वास्तविक जीवन में उस आदर्शवाद का मिलना दुर्लभ है।

'ध्रुवयात्रा' कहानी के कथानक की विवेचना कीजिए ।

उत्तर – ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी लम्बी है लेकिन इसका कथानक उतना ही छोटा है। राजा रिपुदमन बहादुर उत्तरी ध्रुव जीतकर यूरोप से हिन्दुस्तान आता है। अखबारों में यह समाचार सर्वत्र फैल जाता है। वह मानसोपचार के लिए आचार्य मारुति के यहाँ जाता है। वह अपनी प्रेमिका और बच्चे से मिलता है जो पहले की किसी बात पर उससे रुठी भग्नहृदया है। वह उससे कहती है कि तुम्हें दक्षिणी ध्रुव जाना ही होगा, तभी तुम्हारी लक्ष्यपूर्ति होगी। वह भी प्रेमिका के मन्त्र को वरदान मानकर दो दिन बाद शरलैण्ड द्वीप जाने के लिए पूरा जहाज तय कर लेता है। उर्मिला उससे हाथ फैलाते हुए कहती है कि इतनी जल्दी देते नहीं, ओ मेरे राजा ! जाने से पूर्व उसे अन्तिम संध्या को भोज दिया गया जिसमें राष्ट्रदूत, नायक, दलपति थे। तीसरे दिन अखबार हुए एक में उसकी मृत्यु का समाचार आ जाता है। इस कथावस्तु को कहानीकार ने मनोवैज्ञानिकता तथा चिन्तन का पुट समर्थ कहानी का रूप दे दिया है। छोटे तथा ठोस कथानक पर श्रेष्ठ कहानी का भव्य भवन चमकाने वाली जैनेन्द्र जी की कहानी कला अद्भुत है।

'ध्रुवयात्रा' कहानी के शीर्षक पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- ‘ध्रुवयात्रा’ शीर्षक की दृष्टि से एक उच्चस्तरीय कथा है, जिसमें पात्रों का चयन भी जैनेन्द्र ने उच्चकुलीन वर्ग से किया है। निःसन्देह ध्रुवयात्रा जनसामान्य की सोच के परे की बात है। प्रत्येक पात्र ध्रुवयात्रा की पूर्णता में ही अपने जीवन को सफल मानता है। कहानी के कथानक का आरम्भ और अन्त ध्रुवयात्रा के सन्दर्भ के साथ ही होता है। कहानी के नायक और नायिका दोनों ही ध्रुवयात्रा को अपने प्रेम की पराकाष्ठा और कसौटी मानते हैं; जिस पर दोनों अपने को प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं। यद्यपि शीर्षक प्रतीकात्मक है, तथापि सब प्रकार से सार्थक और कहानी के कथानक के उपयुक्त है।

'ध्रुवयात्रा' कहानी का उद्देश्य लिखिए।

उत्तर- ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी सोद्देश्य है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि प्रेयसी जब स्त्री अथवा पत्नी बनने के कगार पर हो और वह प्रेमी की संतति धारिणी हो तब उसके विवाह की विनय को नहीं ठुकराना चाहिए अन्यथा उसका परिणाम किसी भी रूप में अच्छा नहीं, जैसा कि रिपुदमन के साथ हुआ वैसा हो सकता है। लेखक ने कहानी में कुमारी माता को न अपनाने के परिणाम की ओर इंगित किया है, साथ ही अतिप्रेरकता के परिणाम की ओर भी पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। इस प्रकार कुल मिलाकर कहानी उच्च कोटि की है।
‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के कथानक की विवेचना कीजिए ।

ध्रुवयात्रा' कहानी का सारांश (कथावस्तु) अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- राजा रिपुदमन बहादुर की उर्मिला नामक एक प्रेमिका है जिससे वह पहले विवाह के विषय में अपनी लक्ष्य-सिद्धि के कारण मना कर चुका था। वह उत्तरी ध्रुव की यात्रा के लिए जाने से पूर्व अपनी प्रेमिका से पति-पत्नीवत् सम्बन्ध बना चुका था जिसके परिणामस्वरूप उनका एक पुत्र भी उत्पन्न हो चुका था। उत्तरी ध्रुव की यात्रा तो उसने पूर्ण कर ली लेकिन उसका मन व्याकुल रहने लगा। वह भारत लौटा, उसके स्वागत की जोर-शोर से तैयारियाँ हुईं। वह बम्बई से दिल्ली आ गया। यह सब समाचार उर्मिला समाचार-पत्रों में पढ़ती रही। रिपुदमन को नींद कम आती थी, उसका मन पर काबू नहीं रहता था, अतः वह उपचारार्थ मारुति आचार्य के पास पहुँचा । मारुति ने उसे विजेता कहकर पुकारा तो उसने कहा कि मैं रोगी हूँ, विजेता छल है। उसने रिपुदमन से अगले दिन तीन बजकर बीस मिनट पर आने को कहा तथा डायरी में पूर्ण दिनचर्या एवं खर्च लिखने को कहकर उसे विदा कर दिया। अगले दिन वह समय पर पहुँचा ।
आचार्य ने सब कुछ देखकर कहा, तुम्हें कोई रोग नहीं है। तुम्हें अच्छे सम्बन्ध मिल सकते हैं उन्हें चुन लो, विवाह अनिष्ट वस्तु नहीं, वह तो गृहस्थ आश्रम का द्वार है। लेकिन रिपुदमन ने कोई जवाब नहीं दिया। तब मारुति ने परसों मिलने की बात कही। अगले दिन वह सिनेमा गया जहाँ उसकी भेंट उर्मिला से हो गयी, वह बच्चे को लायी थी। रिपुदमन ने बच्चे को लेना चाहा लेकिन उर्मिला उसे अपने कन्धे से चिपकाए जीने पर चढ़ती चली गयी। उसने घंटी बजाकर एक आदमी को बॉक्स पर बुलाया और दो आइसक्रीम लाने का आदेश दिया। रिपुदमन ने उर्मिला से बच्चे के नाम के विषय में पूछा तो उसने मुस्कराते हुए कहा कि अब नाम तुम्हीं रखोगे। उसने दो नाम सुझाए, लेकिन उर्मिला ने कहा, मैं इसे कहती हूँ।
सिनेमा देखना बीच में छोड़कर दोनों ने बीती जिन्दगी की चर्चा की। रिपुदमन ने कहा, उर्मिला तुम अभी भी मुझसे नाराज हो । उर्मिला बोली, मैं तुम्हारे पुत्र की माँ हूँ। तुम अपने भीतर के वेग को शिथिल न करी, तीर की भाँति लक्ष्य . की ओर बढ़ो। याद रखना कि पीछे एक है जो इसी के लिए जीती है। राजा तुम्हें रुकना नहीं है, पथ अनन्त हो, यही गति का आनन्द है। राजा ने कहा, मैं आचार्य मारुति के यहाँ गया था और उसने विवाह का सुझाव दिया है। उर्मिला उसे ढोंगी कहती है तथा कहती है कि वह प्रगतिशीलता में बाधक है, तेजस्विता का अपहर्ता है।
रिपुदमन कहता है कि मुझे जाना ही होगा, तुम्हारा प्रेम दया नहीं जानता। इसके बाद वह दिये गये समयानुसार मारुति आचार्य से मिलने जाता है। उसके पूछने पर वह उर्मिला के विषय में बताता है। आचार्य कहता है-ठीक है, तुम उसी से शादी कर लो, वह धनंजयी की बेटी है। वह मेरी ही बेटी है, मैं उसे समझा दूँगा। उर्मिला आचार्य से मिलती है तो वह भी अनेक प्रकार से उसे समझाता है। फिर रिपुदमन उससे पूछता है कि तुम आचार्य से मिलीं, अब बताओ मुझे क्या करना है। वह कहती है कि तुम्हें अब दक्षिणी ध्रुव जाना है। वह शरलैण्ड द्वीप के लिए जहाज तय कर लेता है तथा परसों जाने की बात कहता है। इस पर उर्मिला कहती है, ‘नहीं राजा, परसों नहीं जाओगे।’ रिपुदमन कहता है, ‘मैं स्त्री की बात नहीं सुनूँगा, मुझे प्रेमिका के मन्त्र का वरदान है।
यह खबर सर्वत्र फैल जाती है कि रिपुदमन दक्षिणी ध्रुव की यात्रा पर जा रहा है। उर्मिला भी कल्पनाओं में खोई रहती है- ‘राष्ट्रपति की ओर से दिया गया भोज हो रहा होगा, सब राष्ट्रदूत होंगे, सब नायक, सब दलपति। तीसरे दिन उसने अखबार में पढ़ा कि ‘राजा रिपदुमन सबेरे खून में सने पाये गये, गोली का कनपटी के आर-पार निशाना है।’ अखबारों ने अपने विशेषांक में मृतक के तकिए के नीचे मिले पत्र को भी छापा था, उसमें यात्रा को निजी कारणों से किया जाना बताया गया था। कहा था कि इस बार मुझे वापस नहीं आना था, दक्षिणी ध्रुव के एकान्त में मृत्यु सुखकर होती। उस पत्र की अन्तिम पंक्ति थी- ‘मुझे सन्तोष है कि मैं किसी की परिपूर्णता में काम आ रहा हूँ। मैं पूरे होश हवास में अपना काम तमाम कर रहा हूँ। भगवान मेरे प्रिय के अर्थ मेरी आत्मा की रक्षा करे।’ लक्ष्य के प्रति उड़ान भरी कहानी का करुणान्त हो जाता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि कहानी ‘ध्रुवयात्रा’ एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। इसमें लक्ष्य प्राप्ति की बात पर कथानायक राजा रिपुदमन सिंह की अपनी प्रेमिका से खटक गयी थी, प्रेमिका ने अपने प्रेमी की लक्ष्य-निष्ठा पर शान चढ़ाई, जिसकी चरम परिणति नायक का करुणान्त हुआ।