कहानी लाटी

'लाटी' कहानी की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।

उत्तर- सुप्रसिद्ध उपन्यासकार तथा कथा-लेखिका शिवानी की यह ‘लाटी’ कहानी एक घटनाप्रधान कहानी है। कहानी की कथावस्तु कथानायक कप्तान के जीवन में घटी एक अत्यन्त मार्मिक घटना से ग्रहण की गई है। घटना के अनुसार कथानायक कप्तान जोशी अपनी बीमार पत्नी ‘बानो’ से अत्यधिक प्रेम करते हैं। टी० बी० की मरीज होने के कारण जब बानो जिन्दगी से निराश हो जाती है तो नदी में डूबकर आत्महत्या करने का प्रयास करती है। कप्तान यह मान लेता है कि बानो डूबकर मर गई, मगर वही बानो बाद में उसे लाटी बनकर मिलती है। अब लाटी न बोल पाती है और न उसे अपने अतीत की कोई बात याद है। इस संक्षिप्त-सी कथावस्तु को कथा-लेखिका ने अपनी प्रतिभा से ऐसे मार्मिक कलेवर में पिरोया है कि मन के सभी तार झंकृत हो उठते हैं।

'लाटी' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- आलोच्य कहानी का उद्देश्य मध्यमवर्गीय समाज में पति के बिना अकेली रहनेवाली पत्नी के जीवन की त्रासद को दिखाना रहा है, जिसमें लेखिका को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। लेखिका ने यह भी सन्देश दिया है कि आज महिला ही महिला के शोषण में लगी है; अत: उन्हें अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करते हुए उनके साथ सहयोग करते हुए अपनी उन्नति के मार्ग को प्रशस्त करना चाहिए। लेखिका का एक उद्देश्य यह भी है कि यदि क्षयरोग जैसे असाध्य रोग में परिजनों का सहयोग और सहानुभूति रोगी को मिले तो व्यक्ति को मृत्यु के आगोश में जाने से बचाया भी जा सकता है। यही कारण है कि लम्बी-चौड़ी देहवाली नेपाली भाभी एक दिन अचानक दम तोड़ देती है और हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गई रुई के फाये जैसी बानो का क्षयरोग बाल भी बाँका न कर सका।

'लाटी' कहानी का सारांश (कथानक) पर प्रकाश डालिए।

कप्तान जोशी गोठिया सैनेटोरियम के तीन नम्बर के बँगले में दुगुना किराया देकर स्वयं अपनी टी०बी० की रोगिणी पत्नी बानो के साथ रहता था। ‘बानो’ से अत्यधिक प्रेम के कारण वह उसके पास ही रहता। वह अपनी पत्नी ‘बानो’ को देख सहज भाव से मुस्करा देता तथा उसे प्रसन्न करने की पूरी कोशिश करता। बँगले के बरामदे में पत्नी के पलंग के पास वह दिनभर कुर्सी डाले बैठा रहता, कभी अपने हाथों से टेम्परेचर चार्ट भरता और कभी समय देख-देखकर दवाइयाँ देता। पास के बँगले में रहनेवाले बड़ी तृष्णा और चाव से इनकी कबूतर – सी जोड़ी को देखते। ऐसी घातक बीमारी पर भी अपनी पत्नी की बड़े यत्न और स्नेह से सेवा करता था कप्तान। विवाह के दो वर्ष बाद ही ‘बानो’ को भयंकर बीमारी (तपेदिक) हो गई। कप्तान दिन-रात उसकी सेवा करता तथा उसे बेहद प्यार करता। उसके पास माता-पिता के पत्र आते कि यह भयंकर बीमारी है, तुम उससे बचकर रहो। माँ ने रो-रोकर पत्र लिखा कि मेरे दस-बीस बेटे नहीं हैं, तुम अकेले हो। कप्तान पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ। उसने ‘बानो’ की सेवा-शुश्रूषा में कोई कमी नहीं रखी।
सैनेटोरियम में ही भर्ती क्षयरोगिणी नेपाली भाभी अपने पति को कोसती और भला-बुरा कहती रहती है। वह खुले मन से कप्तान की प्रशंसा करती है। वह कहती है कि एक मेरा पति है, जो पी के धुत रहता है और सालभर से देखने भी नहीं आया है। वह कप्तान से कहती है शाबाश कप्तान बेटा, तुझे देखकर मेरी छातियों में दूध उतर आता है।
‘बानो’ से विवाह के ठीक तीसरे दिन बाद कप्तान को बसरा जाना पड़ा। बानो को छोड़कर जाना उसे असहनीय था। उसने बानो से पहली मुलाकात में ही उसका नाम पूछा था, जब उसने अपना नाम बानो बताया तो कप्तान ने मजाक में कहा कि यह तो मुसलमानी नाम है। यह सुनकर जब बानो की आँखें छलक उठीं तो कप्तान बोला मैं तो तुम्हें छेड़ रहा था – कितना प्यारा नाम है। अभी बानो केवल 16 (सोलह वर्ष की थी,खिलौने -सी बहू को कप्तान बहुत अधिक प्यार करता था। कप्तान दो वर्ष बाद वापस आता है, इस बीच बानो ने सात-सात ननदों के ताने सुने, भतीजों के कपड़े धोये, ससुर के होज बुने, पहाड़-सी नुकीली छतों पर पाँच-पाँच सेर उड़द पीसकर बड़ियाँ बना डालीं। उससे कहा गया कि तेरे पति को जापानियों ने कैद कर लिया है, अब वह कभी नहीं लौटेगा। सास और चचिया सास के व्यंग्य बाण उसके अन्तर्मन को भेद देते, वह घुलती गई और एक दिन क्षय-रोग से पीड़ित होकर चारपाई पकड़ ली।
युद्ध से लौटकर दूसरे ही दिन कप्तान बानो को देखने चल दिया तो घरवालों के चेहरे लटक गए। एक प्राइवेट बरामदे में लेटी बानो को देखकर कप्तान के होश उड़ गए। दो वर्ष में बानो घिसकर और भी बच्ची बन गई थी। कप्तान को देखकर उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे। अन्त में उसकी नाजुक हालत देखकर डॉक्टर ने कप्तान को नोटिस दे दिया, कल ही कमरा खाली करके मरीज को घर ले जाइए। उसने बानो से कहा घर नहीं, दूसरी जगह चलेंगे। सुबह उठा तो बानो पलंग पर नहीं थी। दूसरे दिन नदी घाट पर बानो की साड़ी मिली उसने आत्महत्या करने का प्रयास किया। कप्तान को जब लाश भी न मिली तो उसने समझ लिया कि बानो नदी में डूबकर मर गई। कप्तान का एक साल में ही दूसरा विवाह हो जाता है, दो बेटे और एक बेटी उसकी पत्नी प्रभा ने उसे दिए। कप्तान अब मेजर हो गया। वैष्णवी के साथ ‘बानो’ जब लाटी के रूप में मेज़र को मिलती है। तो मेजर उसे पहचान लेता है, लेकिन लाटी बोल नहीं पाती है, और न ही अपना अतीत उसे याद है। यहीं पर कहानी का अन्त होता है।