पञ्चशील – सिद्धान्ताः

दिये गये संस्कृत गद्यांशों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए-

(1) पञ्चशीलमिति शिष्टाचारविषयकाः सिद्धान्ताः । महात्मा गौतमबुद्धः एतान् पञ्चापि सिद्धान्तान् पञ्चशीलमिति नाम्ना स्वशिष्यान् शास्ति स्म। अत एवायं शब्दः अधुनापि तथैव स्वीकृतः । इमे सिद्धान्ताः क्रमेण एवं सन्ति-
1. अहिंसा। 2. सत्यम्। 3. अस्तेयम्। 4. अप्रमादः । 5. ब्रह्मचर्यम् इति ।

सन्दर्भ – यह गद्यांश ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘पञ्चशील सिद्धान्ता:’ पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद-पंचशील शिष्टाचारविषयक सिद्धान्त हैं। महात्मा गौतम बुद्ध ने इन पाँचों सिद्धान्तों को पंचशील इस नाम से अपने शिष्यों को समझाया, उपदेशित किया था। इसलिए यह शब्द आज भी वैसे ही स्वीकार किया गया है। ये सिद्धान्त क्रमश: इस प्रकार हैं- (1) अहिंसा, (2) सत्य, (3) चोरी न करना, (4) आलस्य न करना तथा (5) ब्रह्मचर्य।

(2) बौद्धयुगे इमे सिद्धान्ताः वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ता आसन्। परमद्य इमे सिद्धान्ताः राष्ट्राणां परस्परमैत्रीसहयोगकारणानि, विश्वबन्धुत्वस्य, विश्वशान्तेश्च साधनानि सन्ति । राष्ट्रनायकस्य श्रीजवाहरलालनेहरूमहोदयस्य प्रधानमन्त्रित्वकाले चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री पञ्चशीलसिद्धान्तानधिकृत्य एवाभवत्। यतो हि उभावपि देशौ बौद्धधर्मे निष्ठावन्तौ ।

सन्दर्भ- यह गद्यांश ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘पञ्चशील सिद्धान्ताः’ पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद – बौद्ध युग में ये सिद्धान्त व्यक्तिगत जीवन की उन्नति के लिए प्रयोग किये जाते थे, किन्तु आज ये सिद्धान्त राष्ट्रों की पारस्परिक मित्रता एवं सहयोग के कारण हैं, विश्वबन्धुत्व और विश्व शान्ति के साधन हैं। राष्ट्रनायक श्री जवाहरलाल नेहरू महोदय के प्रधानमन्त्रत्विकाल में चीन देश के साथ भारत का मैत्री-सम्बन्ध पंचशील सिद्धान्तों को ही स्वीकार करके हुआ था, क्योंकि दोनों देश बौद्ध धर्म के प्रति निष्ठावान् थे ।

(3) आधुनिके जगति पञ्चशीलसिद्धान्ताः नवीनं राजनैतिकं स्वरूपं गृहीतवन्तः । एवं च व्यवस्थिताः-
1. किमपि राष्ट्रं कस्यचनान्यस्य राष्ट्रस्य आन्तरिकेषु विषयेषु कीदृशमपि व्याघातं न करिष्यति ।
2. प्रत्येकराष्ट्रं परस्परं प्रभुसत्तां प्रादेशिकीमखण्डताञ्च सम्मानयिष्यति ।
3. प्रत्येकराष्ट्रं परस्परं समानतां व्यवहरिष्यति ।
4. किमपि राष्ट्रमपरेण नाक्रंस्यते ।
5. सर्वाण्यपि राष्ट्राणि मिथः स्वां स्वां प्रभुसत्तां शान्त्या रक्षिष्यन्ति ।
विश्वस्य यानि राष्ट्राणि शान्तिमिच्छन्ति तानि इमान् नियमानङ्गीकृत्य परराष्ट्रैस्सार्द्धं स्वमैत्रीभावं दृढीकुर्वन्ति ।

सन्दर्भ- यह गद्यांश ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘पञ्चशील-सिद्धान्ताः’ पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद – आधुनिक संसार में पंचशील के सिद्धान्तों को नये राजनीतिक रूप में ग्रहण किया गया है।
(1) कोई भी राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र के आन्तरिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा।
(2) प्रत्येक राष्ट्र परस्पर प्रभुसत्ता एवं अखण्डता का सम्मान करेगा।
(3) प्रत्येक राष्ट्र परस्पर समानता का व्यवहार करेगा।
(4) कोई भी राष्ट्र दूसरे से आक्रान्त नहीं होगा । [कोई भी राष्ट्र अन्य राष्ट्र पर आक्रमण नहीं करेगा ।]
(5) सभी राष्ट्र अपनी-अपनी प्रभुसत्ता की शान्ति से रक्षा करेंगे।
विश्व के जो राष्ट्र शान्ति चाहते हैं, वे इन नियमों को स्वीकार करके अन्य राष्ट्रों के साथ अपने मित्रता के भावों को मजबूत बनाते हैं।