संस्कृतभाषाया: महत्तवम

दिये गये संस्कृत गद्यांशों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए-

पहला गद्यांश

(1) धन्योऽयं भारतदेशः यत्र समुल्लसति जनमानसपावनी, भव्यभावोद्भाविनी, अस्माकं शब्द-सन्दोह – प्रसविनी सुरभारती। विद्यमानेषु निखिलेष्वपि वाङ्मयेषु अस्याः वाङ्मयं सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्नं अस्ति। प्रथिता लोके इयमेव रामायण-महाभारताद्यैतिहासिकग्रन्थाः, चत्वारो वेदाः, सर्वाः उपनिषदः, अष्टादशपुराणानि, अन्यानि च महाकाव्यनाट्यादीनि अस्यामेव भाषायां लिखितानि सन्ति। इयमेव भाषा सर्वासामार्यभाषाणां जननीति मन्यते भाषातत्त्वविद्भिः । संस्कृतस्य गौरवं बहुविधज्ञानाश्रयत्वं व्यापकत्वं च न कस्यापि दृष्टेरविषयः । संस्कृतस्य गौरवमेव दृष्टिपथमानीय सम्यगुक्तमाचार्यप्रवरेण दण्डिना-
संस्कृतं नाम दैवी वागन्वाख्याता महर्षिभिः ।

सन्दर्भ-यह अवतरण ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘संस्कृतभाषायाः महत्त्वम् पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद – यह भारत देश धन्य है, जहाँ जनमानस को पवित्र करनेवाली, सुन्दर भावों को उत्पन्न करनेवाली, शब्दों के समूह को जन्म देनेवाली देववाणी सुशोभित है। विद्यमान (वर्तमान) सम्पूर्ण साहित्यों में इसका साहित्य सर्वश्रेष्ठ और सुसम्पन्न है। यही भाषा ‘संस्कृत’ नाम से भी संसार में प्रसिद्ध है। हमारे ‘रामायण’, ‘महाभारत’ आदि ऐतिहासिक ग्रन्थ, चारों वेद, समस्त उपनिषद्, अठारह पुराण और अन्य महाकाव्य, नाटक आदि इसी भाषा में लिखे हुए हैं। भाषावैज्ञानिक मानते हैं- “यही भाषा सभी आर्य-भाषाओं की जननी है।” संस्कृत का गौरव, (उसका) अनेक प्रकार के ज्ञान का आश्रय होना और (उसकी) व्यापकता किसी की दृष्टि का अविषय (से छिपा नहीं है। संस्कृत के गौरव को दृष्टि में रखकर आचार्य-प्रवर दण्डी ने ठीक ही कहा है-
” संस्कृत को महर्षियों ने ईश्वरीय वाणी कहा है।”

दूसरा गद्यांश

(2) संस्कृतस्य साहित्यं सरसं, व्याकरणञ्च सुनिश्चितम्। तस्य गद्ये पद्ये च लालित्यं, भावबोधसामर्थ्यम्, अद्वितीयं श्रुतिमाधुर्यञ्च वर्तते। किं बहुना चरित्रनिर्माणार्थं यादृशीं सत्प्रेरणां संस्कृतवाङ्मयं ददाति न तादृशीं किञ्चिदन्यत् । मूलभूतानां मानवीयगुणानां यादृशी विवेचना संस्कृतसाहित्ये वर्तते नान्यत्र तादृशी । दया, दानं, शौचम्, औदार्यम्, अनसूया, क्षमा, अन्ये चानेके गुणाःअस्य साहित्यस्य अनुशीलनेन सञ्जायन्ते ।

सन्दर्भ-यह अवतरण ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘संस्कृतभाषायाः महत्त्वम् पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद – यह भारत देश धन्य है जहाँ जन- हृदय को पवित्र करने वाली, सुन्दर भावों को जगाने वाली, शब्दों के समूह को जन्म देने वाली देवभाषा शोभित होती है। विद्यमान सभी साहित्यों में इसका साहित्य सर्वश्रेष्ठ और बहुत सम्पन्न है। यही भाषा संस्कृत नाम से प्रसिद्ध है। हमारे रामायण, महाभारत आदि ऐतिहासिक ग्रंथ, चारों वेद, सभी उपनिषद्, अट्ठारह पुराण तथा अन्य महाकाव्य तथा नाटक आदि इसी भाषा में लिखे गये हैं। भाषा तत्त्वविदों के द्वारा, इसी भाषा को समस्त आर्य भाषाओं की जननी माना जाता है

तीसरा गद्यांश

(3) संस्कृतसाहित्यस्य आदिकविः वाल्मीकिः, महर्षिर्व्यासः, कविकुलगुरुः कालिदासः अन्ये च भास – भारवि भवभूत्यादयो महाकवयः स्वकीयैः ग्रन्थरत्नैः अद्यापि पाठकानां हृदि विराजन्ते । इयं भाषा अस्माभिः मातृसमं सम्माननीया वन्दनीया च, यतो भारतमातुः स्वातन्त्र्यं, गौरवम्, अखण्डत्वं सांस्कृतिकमेकत्वञ्च संस्कृतेनैव सुरक्षितुं शक्यन्ते । इयं संस्कृतभाषा सर्वासु भाषासु प्राचीनतमा श्रेष्ठा चास्ति । ततः सुष्हूक्तम् ‘भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाणभारती’ इति ।

सन्दर्भ- यह अवतरण ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्’ पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद – संस्कृत साहित्य के आदि कवि वाल्मीकि, महर्षि व्यास, कविकुल गुरु कालिदास, तथा अन्य महाकवि भास, भारवि, भवभूति आदि अपने ग्रन्थ-रत्नों के कारण आज भी पाठकों के हृदय में विराजमान हैं। यह भाषा हमारे लिए माता के समान सम्मान करने योग्य और वन्दना करने योग्य हैं क्योंकि भारत माता की स्वतन्त्रता, गौरव, अखण्डता और सांस्कृतिक एकता संस्कृत के द्वारा ही सुरक्षित रखी जा सकती है। यह संस्कृत भाषा सब भाषाओं में सबसे प्राचीन तथा श्रेष्ठ है। इसलिए ठीक ही कहा है-भाषाओं में मुख्य और मधुर स्वर्गीय देवभाषा है।