दिये गये संस्कृत गद्यांशों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए-
पहला गद्यांश
(1) महामनस्विनः मदनमोहनमालवीयस्य जन्म प्रयागे प्रतिष्ठित-परिवारेऽभवत्। अस्य पिता पण्डितव्रजनाथमालवीयः संस्कृतस्य सम्मान्यः विद्वान् आसीत् । अयं प्रयागे एव संस्कृतपाठशालायां राजकीयविद्यालये म्योर-सेण्ट्रल महाविद्यालये च शिक्षां प्राप्य अत्रैव राजकीय विद्यालये अध्यापनम् आरब्धवान्। युवकः मालवीयः स्वकीयन प्रभावपूर्णभाषणेन जनानां मनांसि अमोहयत्। अतः अस्य सुहृदः तं प्राड्विवाकपदवीं प्राप्य देशस्य श्रेष्ठतरां सेवां कर्तुं प्रेरितवन्तः । तदनुसारम् अयं विधिपरीक्षामुत्तीर्य प्रयागस्थे उच्चन्यायालये प्राड्विवाककर्म कर्तुमारभत् । विधेः प्रकृष्टज्ञानेन, मधुरालापेन, उदारव्यवहारेण चायं शीघ्रमेव मित्राणां न्यायाधीशानाञ्च सम्मानभाजनमभवत् ।
सन्दर्भ – सन्दर्भ- यह गद्यांश ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘महामना मालवीय:’ पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद – महामना मदनमोहन मालवीय का जन्म प्रयाग के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता पं० ब्रजनाथ मालवीय संस्कृत के सम्माननीय विद्वान् थे। इन्होंने प्रयाग में ही संस्कृत पाठशाला, राजकीय विद्यालय और म्योर सेण्ट्रल महाविद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर यहीं राजकीय विद्यालय में अध्यापन-कार्य प्रारम्भ किया। युवक मालवीय ने अपने ओजस्वी भाषण से लोगों के मन को मोह लिया। अतः इनके मित्रों ने इन्हें अधिवक्ता (वकील) की पदवी प्रदान कर देश की सर्वश्रेष्ठ सेवा करने के लिए प्रेरित किया। तदनुसार इन्होंने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण कर, प्रयाग के उच्च न्यायालय में वकालत प्रारम्भ की। कानून के उत्तम ज्ञान, मधुर बातचीत तथा उदार व्यवहार के कारण शीघ्र ही वे मित्रों और न्यायाधीशों के सम्मान के पात्र बन गए।
दूसरा गद्यांश
(2) महापुरुषाः लौकिक-प्रलोभनेषु बद्धाः नियतलक्ष्यान्न कदापि भ्रश्यन्ति । देशसेवानुरक्तोऽयं युवा उच्चन्यायालयस्य परिधौ स्थातुं नाशक्नोत् । पण्डितमोतीलालनेहरू- लालालाजपतरायप्रभृतिभिः अन्यैः राष्ट्रनायकैः सह सोऽपि देशस्य स्वतन्त्रतासङ्ग्रामेऽवतीर्णः । देहल्यां त्रयोविंशतितमे काङ्ग्रेसस्याधिवेशनेऽयम् अध्यक्षपदमलङ्कृतवान्। ‘रोलट एक्ट’ इत्याख्यस्य विरोधेऽस्य ओजस्विभाषणं श्रुत्वा आङ्ग्लशासकाः भीताः जाताः । बहुवारं कारागारे निक्षिप्तोऽपि अयं वीरः देशसेवाव्रतं नात्यजत् ।
सन्दर्भ- यह गद्यांश ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘महामना मालवीय:’ पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद – महान पुरुष दुनिया के लोभों में बंध कर अपने निश्चित लक्ष्य से कभी भ्रष्ट नहीं होते। देश की सेवा में अनुराग रखने वाला यह युवक भी उच्च न्यायालय की परिधि में नहीं रह सका। पं० मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय इत्यादि अन्य राष्ट्रीय नेताओं के साथ ये भी देश के स्वतन्त्रता संग्राम में अवतीर्ण हुए। दिल्ली में काँग्रेस के तेइसवें अधिवेशन में इन्होंने अँग्रेज भयभीत हो गये थे। अध्यक्ष पद को अलंकृत किया। ‘रौलट’ नामक कानून के विरोध में इनके ओजस्वी भाषण को सुनकर अँग्रेज भयभीत अनेक बार जेल में डाले जाने पर भी इस वीर ने देशसेवा का व्रत नहीं छोड़ा।
तीसरा गद्यांश
(3) हिन्दी-संस्कृताङ्ग्लभाषासु अस्य समानः अधिकारः आसीत् । हिन्दी – हिन्दु – हिन्दुस्थाना- नामुत्थानाय अयं निरन्तरं प्रयत्नमकरोत्। शिक्षयैव देशे समाजे च नवीनः प्रकाशः उदेति अतः श्रीमालवीयः वाराणस्यां काशीविश्वविद्यालयस्य संस्थापनमकरोत् । अस्य निर्माणाय अयं जनान् धनम् अयाचत जनाश्च महत्यस्मिन् ज्ञानयज्ञे प्रभूतं धनमस्मै प्रायच्छन्, तेन निर्मितोऽयं विशालः विश्वविद्यालयः भारतीयानां दानशीलतायाः श्रीमालवीयस्य यशसः च प्रतिमूर्तिरिव विभाति। साधारणस्थितिकोऽपि जन: महतोत्साहेन, मनस्वितया, पौरुषेण च असाधारणमपि कार्यं कर्तुं क्षमः इत्यदर्शयत् मनीषिमूर्धन्यः मालवीयः । एतदर्थमेव जनास्तं महामना इत्युपाधिना अभिधातुमारब्धवन्तः ।
सन्दर्भ – सन्दर्भ- यह गद्यांश ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘महामना मालवीय:’ पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद -हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा पर समान अधिकार था। हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान के उत्थान के लिए इन्होंने निरन्तर प्रयत्न किया। शिक्षा से ही देश और समाज में नवीन प्रकाश का उदय होता है, अत: मालवीयजी ने बनारस में ‘काशी विश्वविद्यालय’ की स्थापना की। इसके निर्माण के लिए इन्होंने लोगों से धन माँगा और लोगों ने इस महान् ज्ञान-यज्ञ में इन्हें बहुत-सा धन दिया, उससे निर्मित यह विशाल विश्वविद्यालय भारतीयों की दानशीलता और मालवीयजी के यश की प्रतिकृति-सा सुशोभित हो रहा है। साधारण स्थितिवाला (व्यक्ति) भी महान् उत्साह, विचारशीलता और पुरुषार्थ से असाधारण कार्य भी कर सकता है। इस बात को विद्वानों में श्रेष्ठ मालवीयजी ने दिखा दिया। इसीलिए लोगों ने इनको ‘महामना’ की उपाधि से सम्बोधित करना प्रारम्भ कर दिया।
चौथा गद्यांश
(4) महामना विद्वान् वक्ता, धार्मिको नेता, पटुः पत्रकारश्चासीत्। परमस्य सर्वोच्चगुणः जनसेवैव आसीत्। यत्र कुत्रापि अयं जनान् दुःखितान् पीड्यमानांश्चापश्यत् तत्रैव सः शीघ्रमेव उपस्थितः, सर्वविधं साहाय्यञ्च अकरोत्। प्राणिसेवा अस्य स्वभाव एवासीत् ।
सन्दर्भ- यह गद्यांश ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘महामना मालवीय:’ पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद – महामना विद्वान वक्ता, धार्मिक नेता और चतुर पत्रकार थे। परन्तु इनका सबसे ऊँचा गुण जनसेवा ही था। जहाँ कहीं भी ये लोगों को दुःखी और पीड़ित होते हुए देखते थे, वहीं पर शीघ्र ही पहुँचते थे और सब प्रकार की सहायता करते थे । प्राणिसेवा इनका स्वभाव ही था। आज हमारे मध्य में अनुपस्थित होते हुए भी महामना मालवीय जी अपने यश के अमूर्त रूप प्रकाश फैलाते हुए घोर अन्धकार में डूबे हुए लोगों को सन्मार्ग दिखाते हुए स्थान-स्थान पर तथा जन-जन में उपस्थित हैं।
दिये गये संस्कृत श्लोक का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए-
(5) जयन्ति ते महाभागा जन-सेवा-परायणाः ।
जरामृत्युभयं नास्ति येषां कीर्तितनोः क्वचित्॥
सन्दर्भ – यह श्लोक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘महामना मालवीय:’ पाठ से उद्धृत किया गया है।
हिन्दी अनुवाद – जनसेवा में लगे हुए वे भाग्यशाली विजय प्राप्त करते हैं जिनके कीर्ति रूपी शरीर में बुढ़ापे और मृत्यु का भय नहीं है।