दिये गये पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
पद्य -1
(1) तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे,
नीले वितान के तले दीप बहु जागे ।
टकटकी लगाए नयन सुरों के थे वे,
परिणामोत्सुक उन भयातुरों के थे वे।
उत्फुल्ल करौंदी- कुंज वायु रह-रहकर,
करती थी सबको पुलक- पूर्ण मह-महकर |
वह चन्द्रलोक था, कहाँ चाँदनी वैसी, 
प्रभु बोले गिरा गंभीर नीरनिधि जैसी ।
(i) पद्यांश के पाठ और कवि का नाम लिखिए।
उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश भारतीय संस्कृति के अनन्य पुजारी और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित महाकाव्य ‘साकेत’ के आठवें सर्ग से हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक के काव्य भाग में संकलित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक से उद्धृत है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – रेखांकित अंश की व्याख्या – पास में स्थित करौंदे के बगीचे में पुष्प खिले थे, मानो करौंदी- कुंज सभा के आयोजन पर आनन्द मना रहा है। उस करौंदी- कुंज से आती शीतल – मन्द-सुगन्धित वायु वहाँ उपस्थित सभी लोगों को पुलकित कर रही थी अर्थात् उन्हें आनन्द और सुख प्रदान कर रही थी । वहाँ सभा स्थल पर चारों ओर ऐसी स्वच्छ-धवल चाँदनी बिखरी थी कि चन्द्रलोक में भी वैसी चाँदनी कहाँ छिटकती है। कहने का आशय यह है कि वहाँ प्रकृति ने चन्द्रलोक से भी सुन्दर वातावरण सृजित किया था। ऐसे आनन्दपूर्ण अलौकिक शान्त वातावरण के बीच भगवान् श्रीराम ने समुद्र के समान अत्यन्त गम्भीर वाणी में इस प्रकार बोलना आरम्भ किया।
(iii) पंचवटी के अलौकिक और शान्त वातावरण में श्रीराम ने किस प्रकार बोलना प्रारम्भ किया?
उत्तर – पंचवटी के अलौकिक और शान्त वातावरण में श्रीराम ने समुद्र के समान अत्यन्त गम्भीर वाणी में बोलना प्रारम्भ किया।
(iv) सभी देवतागण किस कारण भयभीत और व्याकुल थे?
उत्तर – सभी देवतागण इसलिए भयभीत और व्याकुल थे; क्योंकि उन्हें भरत परमप्रिय थे और उन्हें भय था कि कहीं भरत के आगमन को लेकर श्रीराम कोई कठोर निर्णय न ले लें।
(v) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस प्रसंग पर आधारित हैं?
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में भ्रातृ-प्रेम से ओत-प्रोत भरतजी श्रीराम से भेंट करने के लिए उनके पंचवटी स्थित आश्रम में पहुँचे। रात्रि में सभा बैठी। इसी सभा का प्रस्तुत पंक्तियों में मनोहारी वर्णन किया गया है। 
