आत्मज्ञ एव सर्वज्ञ :

दिये गये संस्कृत गद्यांशों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए-

पहला गद्यांश

(1) याज्ञवल्क्यो मैत्रेयीमुवाच — मैत्रेयि! उद्यास्यन् अहम् अस्मात् स्थानादस्मि । ततस्तेऽनया कात्यायन्या विच्छेदं करवाणि इति । मैत्रेयी उवाच-यदीयं सर्वा पृथ्वी वित्तेन पूर्णा स्यात् तत् किं तेनाहममृता स्यामिति । याज्ञवल्क्य उवाच-नेति ।

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘आत्मज्ञ एव सर्वज्ञः’ पाठ से लिया गया है। हिन्दी अनुवाद – याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा, “हे मैत्रेयी ! मैं इस स्थान से जाने वाला हूँ। इसलिए तुम्हारा इस कात्यायनी – (माया) से विच्छेद करा देता हूँ।” मैत्रेयी ने कहा- “यदि यह सम्पूर्ण पृथ्वी धन से पूर्ण हो जाये तो क्या मैं उससे अमर हो सकती है ?” याज्ञवल्क्य ने कहा- नहीं।

दूसरा गद्यांश

(2)यथैवोपकरणवतां जीवनं तथैव ते जीवनं स्यात्। अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन इति । सा मैत्रेयी उवाच – येनाहं नामृता स्यां किमहं तेन कुर्याम्? यदेव भगवान् केवलममृतत्वसाधनं जानाति, तदेव मे ब्रूहि । याज्ञवल्क्य उवाच – प्रिया नः सती त्वं प्रियं भाषसे। एहि, उपविश, व्याख्यास्यामि ते अमृतत्वसाधनम्।

सन्दर्भ- यह गद्यांश ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘आत्मज्ञ एव सर्वज्ञः’ पाठ से लिया गया है।
हिन्दी अनुवाद – जैसा साधन-सम्पन्न लोगों का जीवन होता है, वैसा ही तुम्हारा जीवन भी हो सकता है। अमरता की तो धन से आशा नहीं। उस मैत्रेयी ने कहा- जिस धन से मैं अमर नहीं हो सकती, उसका मैं क्या करूँगी? जो कुछ आप केवल अमरता का साधन जानते हैं, वही मुझे बताओ । याज्ञवल्क्य ने कहा- तुम हमारी प्रिया होते हुए प्रिय भाषण करती हो। आओ, बैठो मैं तुम्हें अमरत्व का साधन बताऊँगा ।

तीसरा गद्यांश

(3) याज्ञवल्क्य उवाच – न वा अरे मैत्रेयि! पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवति । आत्मनस्तु वै कामाय पतिः प्रियो भवति । न वा अरे, जायायाः कामाय जाया प्रिया भवति, आत्मनस्तु वै कामाय जाया प्रिया भवति । न वा अरे, पुत्रस्य वित्तस्य च कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति । न वा अरे, सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै कामाय सर्वं प्रियं भवति । तस्माद् आत्मा वा अरे मैत्रेयि! द्रष्टव्यः दर्शनार्थं श्रोतव्यः, मन्तव्यः निदिध्यासितव्यश्च। आत्मनः खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति ।

सन्दर्भ- यह गद्यांश ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘आत्मज्ञ एव सर्वज्ञः’ पाठ से लिया गया है।
हिन्दी अनुवाद – याज्ञवल्क्य ने कहा – मैत्रेयी ! पति की कामना के लिए पति प्रिय नहीं होता, बल्कि अपनी ही कामना के लिए पति प्रिय होता है। है मैत्रेयी ! पत्नी की कामना के लिए पत्नी प्रिय नहीं होती, वरन् अपनी कामना के लिए ही पत्नी प्रिय होती है। हे मैत्रेयी ! पुत्र अथवा धन की कामना के लिए पुत्र अथवा धन प्रिय नहीं होते, अपितु अपनी ही कामना के लिए पुत्र अथवा धन प्रिय होता है। हे मैत्रेयी ! सबकी कामना के लिए सब प्रिय नहीं होते, बल्कि अपनी ही कामना के लिए सब प्रिय होते हैं।